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________________ ४२० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१९-१ प्र.] भगवन् ! सूर्य के ताप से पीड़ित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह शाल-यष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ?, कहाँ उत्पन्न होगी ? [१९-१ उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्याचल के पादमूल (तलहटी) में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली (सैमर) वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वहाँ वह अर्चित, वन्दित और पूजित होगी; यावत् उसका चबूतरा लीपा-पोता हुआ होगा और वह पूजनीय होगी। [२] से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं०, सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिति। [१९-२ प्र.] भगवन् ! वह वहाँ से काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी? [१९-२ उ.] गौतम (पूर्वोक्त) शालवृक्ष के समान (इसके विषय में भी) यावत् वह सर्वदुःखों का अन्त करेगी, (यहाँ तक कहना चाहिए।) २०.[१] एस णं भंते ! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं जाव कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिपुत्ते नामं नगरे पाडलिरूक्खत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ अच्चियवंदिय जाव भविस्सइ। _ [२०-१ प्र.] भगवन् ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीडित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह (प्रत्यक्ष दृश्यमान) उदुम्बरयष्टिका (उम्बर वृक्ष की शाखा) कालमास में काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी? [२०-१ उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलीपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुन: उत्पन्न होगी। वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी। [२] से णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता । सेसं तं चेव जाव अंतं काहिति। __ [२०-२ प्र.] भगवन् ! वहे (पूर्वोक्त उदुम्बर-यष्टिका) यहाँ से काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी? [२०-२ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समग्र कथन कहना चाहिए, यावत्—वह सर्वदुःखों का अन्त करेगी। विवेचन—राजगृह में विराजमान भगवान् महावीर से वनस्पति में जीवत्व के प्रति अश्रद्धालु श्रोताओं (व्यक्तियों) की अपेक्षा से श्री गौतमस्वामी ने प्रत्यक्ष दृश्यमान शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका के भविष्य में अन्य भव में उत्पन्न होने आदि के सम्बन्ध में तीन प्रश्न (तीन सूत्रों १८-१९-२० में) उठाए हैं, जिनका यथार्थ समाधान भगवान् ने किया है।' १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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