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चौदहवां शतक : उद्देशक-८
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'नग-पुढवि-विमाणाइं मिणसु पमाणंगुलेणं तु ।' पर्वत, पृथ्वी और विमानों का माप प्रमाणांगुल से करना चाहिए।'
किन्तु ईषत्प्राग्भारापृथ्वी और अलोक के बीच में जो देशोन योजन का अबाधान्तर (दूरी) बताया है, वह उत्सेधांगुल प्रमाण से समझना चाहिए। क्योंकि उस योजन के उपरितन कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना कही गई है, जो ३३३ धनुष और धनुष के त्रिभाग प्रमाण है। यह अवगाहना उत्सेधांगुल (योजन) मानने से ही संगत हो सकती है। शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका के भावी भवों की प्ररूपणा
१८. [१] एस णं भंते ! सालरुक्खए उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजिहिति ?
गोयमा ! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ अच्चियवंदियपूइयसक्कारियसम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिते यावि भविस्सइ।
. [१८-१ प्र.] भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीडित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह (प्रत्यक्ष दृश्यमान) शालवृक्ष काल मास में (मृत्यु के समय में) काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ?
[१८-१ उ.] गौतम ! यह (प्रत्यक्ष दिखाई देने वाला) शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ यह अचित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य (देवीगुणों से युक्त), सत्य सत्यावपात, सन्निहित-प्रातिहार्य (पूर्वभवसम्बन्धी देवों द्वारा प्रातिहार्यसामीप्य प्राप्त किया हुआ) होगा तथा इसका पीठ (चबूतरा), लीपा-पोता हुआ एवं पूजनीय होगा।।
[२] से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति। [१८-२ प्र.] भगवन् ! वह (पूर्वोक्त) शालवृक्ष वहाँ से मर कर कहाँ जाएगा और कहाँ उत्पन्न होगा ? [१८-२ उ.] गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
१९ [१] एस णं भंते ! साललट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे जाव कहिं उववज्जिहिति ?
गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले महेसरीय नगरीय सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति। सा णं तत्थ अच्चियवंदियपूइए जाव लाउल्लोइयमहिया यावि भविस्सइ।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५२