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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और तुल्य असंख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गल के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। इस कारण हे गौतम ! 'कालतुल्य' कालतुल्य कहलाता है।
विवेचन—कालतुल्य का तात्पर्य—समय, आवलिका, दिन, सप्ताह, पक्ष, मास आदि को काल कहते हैं। एक समय की स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के साथ काल से तुल्य है, किन्तु एक समय के अतिरिक्त दो आदि समयों की स्थिति वाला पुद्गल काल से तुल्य नहीं है। भवतुल्यनिरूपण
८. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ भवतुल्लए, भवतुल्लए ?'
गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवट्ठयाए तुल्ले, नेरइए नेरइयवतिरिलस्स भवट्ठयाए नो तुल्ले। तिरिक्खजोणिए एवं चेव। एवं मुणस्से। एवं देवे वि।से तेणटेणं जाव भवतुल्लए, भवतुल्लए।
[८ प्र.] भगवन् ! 'भवतुल्य' भवतुल्य क्यों कहलाता है ?
[८ उ.] गौतम ! एक नैरयिक जीव दूसरे नैरयिक जीव (या जीवों) के साथ भव-तुल्य है, किन्तु नैरयिक जीवों के अतिरिक्त (तिर्यञ्च-मनुष्यादि दूसरे जीवों) के साथ नैरयिक जीव, भव से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकों के विषय में समझना चाहिए। मनुष्यों के तथा देवों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। इस कारण, हे गौतम ! 'भवतुल्य' 'भवतुल्य' कहलाता है।
विवेचन—भवतुल्य का भावार्थ-नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन चार भवों में से जो प्राणी जिस प्राणी के साथ भव की अपेक्षा तुल्य—समान है, वह भवतुल्य कहलाता है। नरकभव के जीव की तिर्यञ्चादि भव के जीव के साथ भवतुल्यता नहीं है।' भावतुल्यनिरूपण
९. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'भावतुल्लए, भावतुल्लए ?'
गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले, एगगुणकालए पोग्गले एकगुणकालगवतिरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ णो तुल्ले।एवं जाव दसगुणकालए।तुल्लसंखेजगुणकालए पोग्गले तुल्लसंखेज०। एवं तुल्लअसंखेजगुणकालए वि। एवं तुल्लअणंतगुणकालए वि। जहा कालए एवं नीलए लोहियए हालिद्दए सुकिल्लए। एवं सुब्भिगन्धे दुब्भिगंधे एवं तित्ते जाव महुरे। एक कक्खडे जाव लुक्खे। उदइए भावे उदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, उदइए भावे उदइयभाववइरित्तस्स भवस्स भावओ नो तुल्ले। एवं उवसमिए खइए खयोवसमिए पारिणामिए, सन्निवातिए भावे सन्निवातियस्स भावस्स। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति 'भावतुल्लए, भावतुल्लए'।
[९ प्र.] भगवन् ! 'भावतुल्य' भावतुल्य किस कारण से कहलाता है ? __ [९ उ.] गौतम ! एकगुण काले वर्ण वाला पुद्गल, दूसरे एकगुण काले वर्ण वाले पुद्गल के साथ भाव
१. भवो—नारकादि: तेन तुल्यता यस्याऽसौ भवतुल्यः। -
- भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५९