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________________ ४०७ चौदहवां शतक : उद्देशक-७ जानना चाहिए। इसी कारण से हे गौतम ! 'द्रव्यतुल्य' द्रव्यतुल्य कहलाता है। विवेचन—द्रव्यतुल्य : दो अर्थ—(१) द्रव्यतः—एक अणु आदि की अपेक्षा से जो तुल्य हो, वह द्रव्यतुल्य है, अथवा (२) जो द्रव्य, दूसरे द्रव्य के साथ तुल्य हो, वह द्रव्यतुल्य है।' क्षेत्रतुल्यनिरूपण ६. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'खेत्ततुल्लए, खेत्ततुल्लए' ? गोयमा ! एगपदेसोगाढे पोग्गले एगपदेसोगाढस्स पोग्गलस्स खेत्तओ तुल्ले, एगपदेसोगाढेपोग्गले एगपएसोगाढवतिरत्तस्स पोग्गलस्स खेत्तओ णो तुल्ले। एवं जाव दसपदेसोगाढे, तुल्लसंखेजपदेसोगाढे० तुल्लसंखेज०। एवं तुल्लअसंखेजपदेसोगाढे वि।से तेणटेणं जाव खेत्ततुल्लए। [६ प्र.] भगवन् ! 'क्षेत्रतुल्य' क्षेत्रतुल्य क्यों कहलाता है ? [६ उ.] गौतम ! एकप्रदेशावगाढ (आकाश के एक प्रदेश पर रहा हुआ) पुद्गल दूसरे एकप्रदेशावगाढ पुद्गल के साथ क्षेत्र से तुल्य कहलाता है; परन्तु एकप्रदेशावगाढ-व्यतिरिक्त पुद्गल के साथ, एकप्रदेशावगाढ पुद्गल क्षेत्र से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत्-दस-प्रदेशावगाढ पुद्गल के विषय में भी कहना चाहिए तथा एक तुल्य संख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल, अन्य तुल्य संख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल के साथ तुल्य होता है। इसी प्रकार तुल्य असंख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल के विषय में भी कहना चाहिए। इसी कारण से, हे गौतम ! 'क्षेत्रतुल्य' क्षेत्रतुल्य कहलाता है। विवेचन क्षेत्रतुल्य का अर्थ—जहाँ दो क्षेत्र, एकप्रदेशावगाढत्व आदि की अपेक्षा से तुल्य हों, वहाँ क्षेत्रतुल्य कहलाता है। कालतुल्यनिरूपण ७. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ 'कालतुल्लए, कालतुल्लए' ? गोयमा ! एगसमयठितीए पोग्गले एग० कालओ तुल्ले, एगसमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीयवतिरित्तस्स पोग्गलस्स कालओ णो तुल्ले। एवं जाव दससमयद्वितीए। तुल्लसंखेजसमयठितीए एवं चेव। एवं तुल्लअसंखेजसमयट्टितीए वि।से तेणटेणं जाव कालतुल्लए, कालतुल्लए। ६७ प्र.] भगवन् ! 'कालतुल्य' कालतुल्य क्यों कहलाता है ? [७ उ.] गौतम ! एक समय की स्थिति वाला पुद्गल अन्य एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के साथ काल से तुल्य है; किन्तु एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के अतिरिक्त दूसरे पुद्गलों के साथ, एक समय की स्थिति वाला पुद्गल काल से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाले पुद्गल तक के विषय में कहना चाहिए। तुल्य संख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गल तक के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए १. द्रव्यत:—एकाणुकाद्यपेक्षया तुल्यकं द्रव्यतुल्यकम्।अथवा द्रव्यं च तत्तुल्यकं च द्रव्यान्तरेणेति द्रव्यतुल्यकम् विशेषणव्यत्ययात्। - भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४९ २. क्षेत्रत:-एकप्रदेशवगाढत्वादिना तुल्यकं क्षेत्रतुल्यकम्। - भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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