________________
३९२
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[४] एकेन्द्रियों के विषय में नैरयिकों के समान कहना चाहिए। ५. बेइंदिया णं भंते ! अगणिकायस्स मझमझेणं० ? जहा असुरकुमारे तहा बेइंदिए वि। नवरं जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा ? हंता, झियाएजा। सेसं तं चेव। [५ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव अग्निकाय के मध्य में से हो कर जा सकते हैं ?
[५ उ.] जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा उसी प्रकार द्वीन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। परन्तु इतनी विशेषता है
[प्र.] भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव अग्नि के बीच में हो कर जाते हैं, वे जल जाते हैं ? [उ.] हाँ, वे जल जाते हैं। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। ६. एवं जाव चउरिदिए। [६] इसी प्रकार का कथन चतुरिन्द्रिय तक करना चाहिए। ७. [१] पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते। अगणिकाय० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए वीयीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीयीवएज्जा। [७-१ प्र.] भगवान् ! पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव अग्नि के मध्य में होकर जा सकते हैं ? [७-१ उ.] गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [२] से केणढेणं० ?
गोयमा ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—विग्गहगतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमावन्नगा य। विग्गहगतिसमावन्नए जहेव नेरइए जाव नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अविग्गहगइसमावनगा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नता, तं जहा—इड्डिप्पत्ता य अणिड्डिप्पत्ता य। तत्थ णं जे से इड्डिप्पत्ते पंचेंदियतिरिक्खजोणिए से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीयीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीयीवएज्जा।
जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा ? नो इणटे समढे।
नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। तत्थ णं जे से अणिडिप्पत्ते पचेदियतिरिक्खजोणिए से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीयीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीयीवएज्जा।
जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा ? हंता, झियाएजा ! से तेणटेणं जाव नो वीयीवएज्जा।