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________________ चौदहवां शतक : उद्देशक-५ __३९१. असर नहीं होता। उनमें से जो अविग्रहगतिसमापनक नैरयिक हैं वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते, (क्योंकि नरक में बादर अग्नि नहीं होती)। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता है। २[१] असुरकुमारे णं भंते अगणिकायस्स० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए वीयीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीयीवएजा। [१-२ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव अग्निकाय के मध्य में हो कर जा सकते हैं ? [१-२ उ.] गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [२] से केणढेण जाव नो वीतीवएज्जा ? गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा—विग्गहगतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमावनगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं एवं जहेव नेरतिए जाव कमति। तत्थ ण जे से अविग्गहगतिसमावन्नए. असुरकुमारे से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीयीवएज्जा, अत्थेगइए नो वीयीवएज्जा। जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा ? नो इणटे समढे। नो खलु तत्थ सत्थं कमति। से तेणटेणं०। [२-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार अग्नि के मध्य में से होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता है ? [२-२ उ.] गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगतिसमापनक। उनमें से जो विग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिकों के समान हैं, यावत् उन पर अग्निशस्त्र असर नहीं कर सकता। उनमें जो अविग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [प्र.] जो (असुरकुमार) अग्नि के मध्य में हो कर जाता है, क्या वह जल जाता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उस पर अग्नि आदि शस्त्र का असर नहीं होता। इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। ३. एवं जाव थणियकुमारे। [३] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार देव तक कहना चाहिए। ४. एगिदिया जहा नेरइया।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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