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चौदहवां शतक : उद्देशक-५
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असर नहीं होता।
उनमें से जो अविग्रहगतिसमापनक नैरयिक हैं वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते, (क्योंकि नरक में बादर अग्नि नहीं होती)। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता है।
२[१] असुरकुमारे णं भंते अगणिकायस्स० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए वीयीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीयीवएजा। [१-२ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव अग्निकाय के मध्य में हो कर जा सकते हैं ? [१-२ उ.] गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [२] से केणढेण जाव नो वीतीवएज्जा ?
गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा—विग्गहगतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमावनगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं एवं जहेव नेरतिए जाव कमति। तत्थ ण जे से अविग्गहगतिसमावन्नए. असुरकुमारे से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीयीवएज्जा, अत्थेगइए नो वीयीवएज्जा।
जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा ? नो इणटे समढे। नो खलु तत्थ सत्थं कमति। से तेणटेणं०।
[२-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार अग्नि के मध्य में से होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता है ?
[२-२ उ.] गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगतिसमापनक। उनमें से जो विग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिकों के समान हैं, यावत् उन पर अग्निशस्त्र असर नहीं कर सकता। उनमें जो अविग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता।
[प्र.] जो (असुरकुमार) अग्नि के मध्य में हो कर जाता है, क्या वह जल जाता है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उस पर अग्नि आदि शस्त्र का असर नहीं होता। इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार जा सकता है और कोई नहीं जा सकता।
३. एवं जाव थणियकुमारे। [३] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार देव तक कहना चाहिए। ४. एगिदिया जहा नेरइया।