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चौदहवाँ शतक : उद्देशक-४
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९. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं चरिमे, अचरिमे ?
गोयमा ! दव्वादेसेणं नो चरिमे, अचरिमे; खेत्तादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; कालादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; भावादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे।
[९ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल चरम है या अचरम है ?
[९ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा (द्रव्यादेश से) चरम नहीं, अचरम है; क्षेत्र की अपेक्षा (क्षेत्रादेश से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है तथा भावादेश से भी कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है।
विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों में से ८वें सूत्र में परमाणुपुद्गल की शाश्वतता-अशाश्वतता का और नौवें सूत्र में उसकी चरमता-अचरमता का प्रतिपादन किया गया है।
परमाणुपुद्गल शाश्वत कैसे, अशाश्वत कैसे ?–परमाणुपुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है, क्योंकि स्कन्ध के साथ मिल जाने पर भी उसकी सत्ता नष्ट नहीं होती। उस सयम वह 'प्रदेश' कहलाता है। किन्तु वर्णादि पर्यायों की अपेक्षा परमाणुपुद्गल अशाश्वत है, क्योंकि पर्यायें विनश्वर हैं; परिवर्तनशील हैं।'
___चरम, अचरम की परिभाषा : परमाणु की अपेक्षा से—जो परमाणु विवक्षित परिणाम से रहित होकर पुनः उस परिणाम को कदापि प्राप्त नहीं होता, वह परमाणु, उस परमाणु की अपेक्षा 'चरम' कहलाता है। जो परमाणु उस परिणाम को पुनः प्राप्त होता है, वह उस अपेक्षा से 'अचरम' कहलाता है।
परमाणुपुद्गल चरम कैसे, अचरम कैसे ?—द्रव्य की अपेक्षा से—परमाणु चरम नहीं, अचरम है, क्योंकि परिणाम से रहित बना हआ परमाण संघात-परिणाम को प्राप्त होकर पनः कालान्तर में परम -परिणाम को प्राप्त होता है। क्षेत्र की अपेक्षा से—परमाणु कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है। जिस क्षेत्र में किसी केवलज्ञानी ने केवलीसमुद्घात किया था, उस समय जो परमाणु वहाँ रहा हुआ था, वह समुद्घात-प्राप्त उक्त केवलज्ञानी के सम्बन्ध-विशेष से वह परमाणु पुनः कदापि उस क्षेत्र को आश्रय नहीं करता, क्योंकि वे समुद्घात-प्राप्त केवली निर्वाण को प्राप्त हो चुके हैं। वे अब उस क्षेत्र में पुन: कभी भी नहीं आयेंगे। इसलिए उस क्षेत्र की अपेक्षा वह परमाणु 'चरम' कहलाता है। किन्तु विशेषणरहित क्षेत्र की अपेक्षा परमाणु फिर उस क्षेत्र में अवगाढ होता है, इसलिए 'अचरम' कहलाता है। काल की अपेक्षा से-परमाणुपुद्गल कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है। यथा—जिस प्रात:काल आदि समय में केवली ने समुद्घात किया था, उस काल में जो परमाणु रहा हुआ था, वह परमाणु उस केवली समुद्घात-विशिष्ट काल को प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि वे केवलज्ञानी मोक्ष चले गए। अत: वे पुन: कभी समुद्घात नहीं करेंगे। इसलिए उस अपेक्षा काल से परमाणु चरम है और विशेषण-रहित काल की अपेक्षा परमाणु अचरम है। भाव की अपेक्षा—परमाणु चरम भी है और अचरम भी। यथा—केवली-समुद्घात के समय जो परमाणु वर्णादि भावविशेष को प्राप्त हुआ था, वह परमाणु
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४० २. (क) वही, अ. वृत्ति, पत्र ६४०
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २३०८