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चौदहवाँ शतक : उद्देशक-४
३८७ और विश्रसाकरण) द्वारा अनेकभाव वाले अनेकभूत (अनेकरूप) परिणाम से परिणत हुआ था? और उसके बाद वेदनीयकर्म ( और उपलक्षण से ज्ञानावरणीयादि कर्मों) की निर्जरा होने पर जीव एकभाव वाला और एकरूप वाला था ?
[५ उ.] हाँ, गौतम ! यह जीव ............. यावत् एकरूप वाला था। ६. एवं पडुप्पन्नं सासयं समयं। [६] इसी प्रकार शाश्वत वर्तमान काल के विषय में भी समझना चाहिए। ७. एवं अणागयमणंतं सासयं समयं। [७] अनन्त अनागतकाल के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) समझना चाहिए।
विवेचन—प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ५-६-७) में जीव के सुखी, दुःखी आदि परिणामों के परिवर्तित हाने के सम्बन्ध में भूत, वर्तमान और भविष्यत्-कालसम्बन्धी प्रश्नोत्तर किये गए हैं।
आशय—यह जीव अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखी एक समय में अदुःखी (सुखी) तथा एक समय में दुःखी और सुखी था। इस प्रकार अनेक परिणामों से परिणत होकर पुन: किसी समय एकभावपरिणाम में परिणत हो जाता है। एकभावपरिणाम में परिणत होने से पूर्व काल-स्वभावादि कारण समूह से एवं शुभाशुभकर्म-बन्ध की हेतुभूत क्रिया से, सुखदुःखादिरूप अनेकभावरूप परिणाम से परिणत होता है। पुनः दुःखादि अनेकभावों के हेतुभूत वेदनीयकर्म और ज्ञानावरणीयादि कर्मों के क्षीण होने पर स्वाभाविकसुखरूप एक भाव से परिणत होता है। परमाणुपुद्गल की शाश्वतता-अशाश्वतता एवं चरमता-अचरमता का निरूपण
८.[१] परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सासए असासए ? गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए। [८-१ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ? [८-१ उ.] गौतम ! वह कथञ्चित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई 'सिय सासए, सिय असासए ?'
गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासए, वण्णपजवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासए। से तेणटेणं जाव सिय असासए।
[८-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (परमाणुपुद्गल) कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है ?
[८-२ उ.] गौतम ! द्रव्यार्थरूप से शाश्वत है और वर्ण (वर्ण, गन्ध, रस) यावत् स्पर्श-पर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत है। हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि परमाणुपुद्गल कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत है।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६३९