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________________ ३८४ रहते हैं ? [उ.] गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम परिग्रहसंज्ञा - परिणाम का अनुभव करते हैं, (यहाँ तक समझना व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चाहिए)। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं । विवेचन प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १४ से १७ तक) में जीवाभिगमसूत्र के अतिदेशपूर्वक सातों नरकपृथ्वियों के नैरयिकों द्वारा पुद्गलपरिणाम, वेदनापरिणाम आदि बीस परिणाम-द्वारों में विविध प्रकार के अनिष्ट यावत् अमनोज्ञ परिणामों के अनुभव का प्रतिपादन किया गया है। दस प्रकार की वेदनाओं का परिणामानुभव — नैरयिक जीव अशुभतम पुद्गल - परिणामों का अनुभव करने के उपरांत शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा, खुजली, परतंत्रता, भय, शोक, जरा और व्याधि, इन १० प्रकार की वेदनाओं का भी अनिष्टतम परिणामानुभव करते हैं । ॥ चौदहवाँ शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ १. पोग्गलपरिणामं १ वेयणाइ २ लेसाइ ३ नाम - गोए य ४ । अरई ५ भए ६ य सोगे ७ खुहा ८ पिवासा ९ य वाही य १० ॥ १ ॥ उस्सासे ११ अणुतावे १२ कोहे १३ माणे १४ य माय १५ लोभे य १६ । चत्तारी य सन्नाओ २० नेरइयाणं परीणामो ॥ २ ॥ - जीवा. प्रति ३ उ. २ पत्र १०९-२७ २. भगवती ( हिन्दीविवेचन ) भा. ५, पृ. २२०३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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