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रहते हैं ?
[उ.] गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम परिग्रहसंज्ञा - परिणाम का अनुभव करते हैं, (यहाँ तक समझना
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
चाहिए)।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं ।
विवेचन प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १४ से १७ तक) में जीवाभिगमसूत्र के अतिदेशपूर्वक सातों नरकपृथ्वियों के नैरयिकों द्वारा पुद्गलपरिणाम, वेदनापरिणाम आदि बीस परिणाम-द्वारों में विविध प्रकार के अनिष्ट यावत् अमनोज्ञ परिणामों के अनुभव का प्रतिपादन किया गया है।
दस प्रकार की वेदनाओं का परिणामानुभव — नैरयिक जीव अशुभतम पुद्गल - परिणामों का अनुभव करने के उपरांत शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा, खुजली, परतंत्रता, भय, शोक, जरा और व्याधि, इन १० प्रकार की वेदनाओं का भी अनिष्टतम परिणामानुभव करते हैं ।
॥ चौदहवाँ शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
१. पोग्गलपरिणामं १ वेयणाइ २ लेसाइ ३ नाम - गोए य ४ ।
अरई ५ भए ६ य सोगे ७ खुहा ८ पिवासा ९ य वाही य १० ॥ १ ॥
उस्सासे ११ अणुतावे १२ कोहे १३ माणे १४ य माय १५ लोभे य १६ ।
चत्तारी य सन्नाओ २० नेरइयाणं परीणामो ॥ २ ॥ - जीवा. प्रति ३ उ. २ पत्र १०९-२७
२. भगवती ( हिन्दीविवेचन ) भा. ५, पृ. २२०३