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चउत्थो उद्देसओ : 'पोग्गल' चतुर्थ उद्देशक : पुद्गल (आदि के परिणाम) पोग्गल १ खंधे २ जीवे ३ परमाणु ४ सासए य ५ चरमे य।
दुविहे खलु परिणामे, अजीवाणं य जीवाणं॥६॥ [उद्देशक-प्रतिपाद्य संग्रह गाथार्थ]-(१) पुद्गल, (२) स्कन्ध, (३) जीव, (४) परमाणु, (५) शाश्वत, (६) और अन्त में—द्विविध परिणाम—जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम, ये छह प्रतिपाद्य-विषय चतुर्थ उद्देशक में हैं। त्रिकालवर्ती विविधस्पर्शादिपरिणत पुद्गल की वर्णादि परिणाम-प्ररूपणा
१. एस णं भंते ! पोग्गले तीतमणंतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा, पुव्विं च णं करणेणं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणामं परिणमइ, अह से परिणामे निजिण्णे भवति तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया ?
हंता, गोयमा ! एस णं पोग्गले तीत०, तं चेव जाव एगरूवे सिया।
[१ प्र.] भगवन् ! क्या यह पुद्गल (परमाणु या स्कन्ध) अनन्त, अपरिमित और शाश्वत अतीतकाल में एक समय तक रूक्ष स्पर्श वाला रहा, एक समय तक अरूक्ष (स्निग्ध) स्पर्श वाला और एक समय तक रूक्ष
और स्निग्ध दोनों प्रकार के स्पर्श वाला रहा? (तथा) पहले करण (अर्थात् प्रयोगकरण और विस्रसाकरण) के द्वारा (क्या यही पुद्गल) अनेक वर्ण और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ और उसके बाद उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण (निर्जीर्ण) हाने पर वह एक वर्ण और एक रूप वाला भी हुआ था।
[१ उ.] हाँ, गौतम ! यह पुद्गल .......... अतीत काल में .......... इत्यादि सर्वकथन, यावत्—'एक रूप वाला भी हुआ था,' (यहाँ तक कहना चाहिए।)
२. एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं०? एवं चेव।
[२ प्र.] भगवन् ! यह पुद्गल (परमाणु या स्कन्ध) शाश्वत वर्तमानकाल में एक समय तक .........? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[२ उ.] गौतम ! पूर्वोक्त कथनानुसार जानना चाहिए। ३. एवं अणागयमणंतं पि।
[३] इसी प्रकार अनन्त और शाश्वत अनागत काल में एक समय तक, (इत्यादि प्रश्नोत्तर भी पूर्ववत् जानना चाहिए।)
४. एस णं भंते। खंधे तीतमणंतं०?