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________________ चोद्दसमं सयं : चौदहवाँ शतक प्राथमिक व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के इस चौदहवें शतक में दश उद्देशक हैं, इसमें भावितात्मा अनगार, केवली, सिद्ध आदि के ज्ञान एवं लब्धि आदि से सम्बन्धित विषयों के अतिरिक्त उन्माद, शरीर, पुद्गल अग्नि, किमाहार आदि विविध तात्त्विक विषयों का भी निरूपण किया गया है। प्रथम उद्देशक चरम है। इसमें भावितात्मा अनगार की चरम और परम देवावास के मध्य की गति का वर्णन है। तदनन्तर चौवीस दण्डकों में अनन्तरोपपन्नकादि की तथा अनन्तरोपपन्नादि के आयुष्यबन्ध की, अनन्तरनिर्गतादि की तथा अन्तरनिर्गतादि के आयुष्यबन्ध की, अनन्तखेदोपपन्नादि की एवं अनन्तरखेदनिर्गतादि की तथा इन सबके आयुष्यबन्ध की प्ररूपणा की गई है। द्वितीय उद्देशक में विविध उन्माद और उसके कारण तथा चौवीस दण्डकों में विविध उन्माद और उनके कारणों की मीमांसा की गई है। तदनन्तर स्वाभाविक वृष्टि एवं देवकृत वृष्टि का तथा चतुर्विध देवकृततमस्काय का सहेतुक निरूपण किया गया है। तृतीय उद्देशक में भावितात्मा अनगार के शरीर के मध्य में से होकर जाने के महाकाय देव के सामर्थ्यअसामर्थ्य का सहेतुक निरूपण है। फिर चौवीस दण्डकों में परस्पर सत्कारादि विनय की प्ररूपणा की गई है। तत्पश्चात् अल्पर्द्धिक, महर्द्धिक और समर्द्धिक देव-देवियों के मध्य में से होकर एक-दूसरे के निकलने का वर्णन है। अन्त में सातों नरकों के नैरयिकों को अनिष्ट पुद्गलपरिणाम, वेदनापरिणाम और परिग्रहसंज्ञापरिणाम के अनुभव का निरूपण किया गया है। चतुर्थ उद्देशक में पुद्गल के त्रिकालापेक्षी विविध वर्णादि परिणामों की, जीव के त्रिकालापेक्षी सुःखदु:ख आदि विविध परिणामों की प्ररूपणा की गई है। तदनन्तर परमाणु पुद्गल की शाश्वतताअशाश्वतता तथा चरमता-अचरमता की चर्चा की गई है। अन्त में परिणाम के जीव-परिणाम और अजीव-परिणाम, ये दो भेद बताकर प्रज्ञापनासूत्र के समग्र परिणामपद का अतिदेश किया गया है। पंचम उद्देशक में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के अग्नि में होकर गमन सामर्थ्य की तथा शब्दादि दस स्थानों में इष्टानिष्ट स्थानों के अनुभव की एवं महर्द्धिक देव द्वारा तिर्यक् पर्वतादि उल्लंघन-प्रोल्लंघनसामर्थ्य-असामर्थ्य की प्ररूपणा की गई है। छठे उद्देशक में चौवीस दण्डकों के जीवों द्वारा पुद्गलों के आहार, परिणाम, योनि और स्थिति की तथा वीचिद्रव्य-अवीचिद्रव्याहार की प्ररूपणा की गई है। अन्त में शक्रेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक के देवेन्द्रों
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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