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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
प्रस्तुत किया गया है। ___ पांच प्रश्न–(१) क्या कमल की डंडी को तोड़ते हुए चलने वाले पुरुष की तरह तथारूप विक्रिया करके आकश में उड़ सकता है ?
(२) क्या पानी में डूबी और मुख बाहर निकली हुई मृणालिका की तरह रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? (३) दर्शनीय वनखण्ड के समान रूपविकुर्वणा कर सकता है? (४) रमणीय पुष्करिणी, वापी-सम रूपविकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ? (५) पूर्वोक्त पुष्करिणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? '
कठिन शब्दार्थ भिसं—कमलनाल, मृणाल।अवहालिय-तोड़ता हुआ। मुणालिया-नलिनी। उम्मजिय–डुबकी लगाती हुई। किण्होभास—काले प्रकाश या आभास वाला। निकुरंबभूए–समूह के समान । सनइयमधुरसर णादिया—(पक्षियों के) उन्नत शब्द, मधुर स्वर और निनाद से गूंजती हुई। माया (प्रमादी) द्वारा विकुर्वणा, अप्रमादी द्वारा नहीं
२६. से भंते ! किं मायी विउव्वइ, अमायी विउव्वइ ?
गोयमा ! मायी विउव्वति, नो अमायी विउव्वति। ___ [२६ प्र.] भगवन् ! क्या (पूर्वोक्त रूपों की) विकुर्वणा मायी (अनगार) करता है, अथवा अमायी (अनगार) ?
[२६ उ.] गौतम ! मायी विकुर्वणा करता है, अमायी (अनगार) विकुर्वणा नहीं करता। उस स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण किये बिना मरने की अनाराधकता
२७. मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइया० एवं जहा ततियसए चउत्थुद्देसए ( स० ३ उ० ४ सु० १९) जाव अत्थि तस्स आराहणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति।
॥तेरसमे सए नवमो उद्देसओ समत्तो॥१३-९॥ [२७] मायी अनगार यदि उस (विकुर्वणा रूप प्रमाद-) स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो उसके आराधना नहीं (विराधना) होती है; इत्यादि तीसरे शतक के चतुर्थ
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त ) भा. २, पृ. ६५५-६५६ २. (क) भगवती. अ. वृति
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२७०