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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-९ ३५५ २३. से जहानामए वणसंडे सिया किण्हे किण्होभासे जाव' निकुरुंबभूए पासादीए ४, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वणसंडकिच्चगतेणं अप्पाणेणं उर्दू वेहासं उप्पएज्जा, सेसं तं चेव।। । [२३ प्र.] (भगवन् ! ) जिस प्रकार कोई वनखण्ड हो,जो काला, काले प्रकाश वाला, नीला, नीले आभास वाला, हरा, हरे आभास वाला यावत् महामेघसमूह के समान प्रसन्नतादायक, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप (सुन्दरतम) हो; क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी—(वैक्रियशक्ति से) स्वयं वनखण्ड के समान विकर्वणा करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? [२३ उ.] (हाँ, गौतम ! ) शेष सभी कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। २४. से जहानामए पुक्खरणी सिया, चउक्कोणा समतीरा अणुपुव्वसुजाय० जाव' सदुन्नइयमहुरसरणादिया पासादीया ४, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा पोक्खरणीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता, उप्पतेजा। [२४ प्र.] (भगवान् ! ) जैसे कोई पुष्करिणी हो, जो चतुष्कोण और समतीर हो तथा अनुक्रम से जो शीतल गंभीर जल से सुशोभित हो, यावत् विविध पक्षियों के मधुर स्वर-नाद आदि से युक्त हो तथा प्रसन्नतादायिनी, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी (वैक्रियशक्ति से) उस पुष्करिणी के समान रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? [२४ उ.] हाँ, गौतम ! वह उड़ सकता है। २५. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाइं पभू पोक्खरणीकिच्चगयाइं रूवाई विउवित्तए० ? सेसं तं चेव जाव' विउस्सति वा। । [२५ प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार (पूर्वोक्त) पुष्करिणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? [२५ उ.] (हे गौतम ! ) शेष सभी कथन पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत्-परन्तु सम्प्राप्ति द्वारा उसने इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, वह करता भी नहीं और करेगा भी नहीं; (यहाँ तक कहना चाहिए)। विवेचन—प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. २१ से २५ तक) में भावितात्मा अनगार की वैक्रियशक्ति के सम्बन्ध में १. 'जाव' पद सूचक पाठ-"नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियंकडिच्छाए रम्मे महामेहनिउरुंबभूए त्ति''-अ० वृ०, पत्र ६२८ २. 'जाव' पद सूचक पाठ-"अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजला''-अवृ०॥ ३. 'जाव' पद सूचक पाठ—"सूय-बरहिण-मयणसाय-कोंच-कोइल-कोजक-भिंगारक-कोंडलक-जीवंजीवक नंदीमुह-कविल-पिंगलक्खग-कारंडग-चक्कवाय-कलहंस-सारस-अणेग-सउणगणमिणविरइयसदुन्नइयमहुरसरनाइय त्ति" -अवृ. ॥
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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