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तेरहवां शतक : उद्देशक-९
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इन आठों ही प्रश्नों का उत्तर स्वीकृति सूचक है।
कठिन शब्दों का अर्थ-वग्गुली—चर्मपक्षी—चमचेड़। जन्नोवइय–यज्ञोपवीत। उव्विहियउत्प्रेरित करके ठेल-ठेल कर। बीयंबीयग-सउणे-बीजंबीजक नाम का पक्षीविशेष । समतुरंगेमाणेदोनों पैर अश्व के समान एक साथ उठाता हुआ।पक्खिबिरालाए—पक्षीविडालक नामक प्राणी। डेवेमाणेअतिक्रमण करता—लांघता हुआ या छलांग लगाता हुआ। वीईओ वीइं—एक तरंग से दूसरी तरंग पर। चक्र, छत्र, चर्म, रत्नादि लेकर चलने वाले पुरुषवत् भावितात्मा अनगार की विकुर्वणाशक्तिनिरूपण
१६. से जहानामए केयि पुरिसे चक्कं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा चक्कहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं०, सेसं जहा केयाघडियाए।
[१६ प्र.] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र लेकर चलता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी (वैक्रियशक्ति से) तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में लेकर स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ?
[१६ उ.] (हाँ, गौतम ! ) सभी कथन रज्जुबद्धघटिका के समान जानना चाहिए। १७. एवं छत्तं। [१७] इसी प्रकार छत्र के विषय में कहना चाहिए। १८. एवं चम्म। [१८] इसी प्रकार चर्म (या चामर) के सम्बन्ध में भी कथन करना चाहिए।
१९. से जहानामए केयि पुरिसे रयणं गहाय गच्छेज्जा०, एवं चेव। एवं वइरं, वेरुलियं, जाव' रिठें। [१९ प्र.] (भगवन् ! ) जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है, (क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार
..." इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न)। [१९ उ.] (गौतम ! ) यहाँ भी पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत् रिष्टरत्न तक पूर्ववत् आलापक कहना चाहिए।
भी ........
१. वियाहपण्णतिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. र, पृ. ६५४ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२८ ३. पाठान्तर—'चामरं' ४. 'जाव' पद सूचक पाठ-"लोहियक्खं मसारगल्लं हंसगब्भं पलगं सोगंधियं जोईरसं अंकं अंजणं रयणं जायरूवं
अंजणपुलगंफलिहं ति।"