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________________ ३५२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एवामेव अणगारे०, सेसं तं चेव।. [१३ प्र.] (भगवन् ! ) जैसे कोई जीवंजीवक पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े के समान एक साथ उठाता-उठाता गमन करता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी ........'' इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्। [१३ उ.] (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। शेष सभी कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। १४. से जहाणामए हंसे सिया, तीरातो तीरं अभिरममाणे अभिरममाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे हंसकिच्चगतेणं अप्पाणेणं०, तं चेव। [१४ प्र.] (भगवन् ! ) जैसे कोई हंस (विशाल सरोवर के) एक किनारे से दूसरे किनारे पर क्रीडा करता-करता चला जाता है, क्यों वैसे ही भावितात्मा अनगार भी हंसवत् विकुर्वणा करके गगन में उड़ सकता है। _ [१४ उ.] (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है।) यहाँ भी सभी वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। १५. ते जहानामाए समुद्दवासए सिया, वीयीओ वीयिं डेवेमाणे डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव०, तहेव। [१५ प्र.] (भगवन् ! ) जैसे कोई समुद्रवायस (समुद्री कौआ) एक लहर (तरंग) से दूसरी लहर का अतिक्रमण करता-करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी ............... इत्यादि प्रश्न। . [१५ उ.] यहाँ भी पूर्ववत् उत्तर समझना चाहिए। विवेचन, प्रस्तुत आठ सूत्रों में आठ उदाहरण देकर शास्त्रकार ने उनके समान रूप बनाने की भावितात्मा। अनगार की वैक्रियशक्ति के विषय में प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये हैं। आठ प्रश्न–(१) चमगादड़ के समान दोनों पैर वृक्ष आदि पर लटका कर पैर ऊपर सिर नीचा किये हुए रहता है, तद्वत्। . (२) यज्ञोपवीत धारण किये हुए विप्र की तरह ? (३) जलौका अपने शरीर को पानी में ठेल-ठेल कर चलती है, उस प्रकार? (४) जैसे बीजंबीज पक्षी दोनों पैरों को घोड़े की तरह उठाता-उठाता गमन करता है, क्या उसके समान ? (५) जैसे पक्षीबिडालक एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर उछलता हुआ जाता है, क्या उसी प्रकार ? (६) जैसे जीवंजीव पक्षी दोनों पैरों को घोड़े की तरह एक साथ उठाता हुआ गमन गरता है, क्या उस तरह? (७) जैसे हंस एक तट से दूसरे तट पर क्रीड़ा करता हुआ जाता है, क्या उसी प्रकार ? (८) जैसे समुद्री कौआ एक लहर से दूसरी लहर को अतिक्रमण करता-करता जाता है, क्या उसी प्रकार ?
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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