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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[४२ उ.] गौतम ! पण्डितमरण दो प्रकार का कहा गया है, यथा—पादपोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यान
मरण।
४३. पाओवगमणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविधे पन्नत्ते, तं जहा—णीहारिमे य, अणीहारिमे, नियमं अपडिकम्मे। [४३ प्र.] भगवन् ! पादपोपगमनमरण कितने प्रकार का कहा गया है ?
[४३ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा—(१) निर्हारिम और (२) अनिर्हारिम। (दोनों प्रकार का यह पादपोपगमनमरण) नियमत: अप्रतिकर्म (शरीर-संस्काररहित) होता है।
४४. भत्तपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? एवं तं चेव, नवरं नियमं सपडिकम्मे। सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति।
॥तेरसमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो ॥१३-७॥
[४४ प्र.] भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यानमरण कितने प्रकार का कहा गया है ?
[४४ उ.] (गौतम !) वह भी इसी प्रकार (पूर्ववत् दो प्रकार का) है, विशेषता यह है कि दोनों प्रकार का यह मरण नियमतः सप्रतिकर्म (शरीरसंस्कारसहित) होता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन—पण्डितमरण : भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप—पण्डितमरण के मुख्यतया दो भेद हैंपादपोपगमन और भक्त-प्रत्याख्यान। पादपोपगमन का अर्थ है—संथारा करके कटे हुए वृक्ष की तरह जिस स्थान पर, जिस रूप में एक बार लेट जाए, फिर उसी स्थान में निश्चल होकर लेटे रहना और उसी रूप में समभावपूर्वक शरीर त्याग देना। इस मरण में हाथ-पैर हिलाने या नेत्रों की पलक झपकाने का भी आगार नहीं होता। यह मरण नियमतः अप्रतिकर्म (शरीर को धोना, मलना आदि शरीरसंस्कार से रहित) होता है।'
भक्तप्रत्याख्यान-यावजीवन तीन या चारों प्रकार के आहारों का त्याग करके समभावपूर्वक मृत्यु का वरण करना भक्तप्रत्याख्यानमरण है। इसे भक्तपरिज्ञा भी कहते हैं। इंगितमरण भक्तप्रत्याख्यान का ही विशिष्ट प्रकार है, इसलिए उसका पृथक् उल्लेख नहीं किया गया। भक्त प्रत्याख्यानमरण नियमतः सप्रतिकर्म (शरीरसंस्कारयुक्त) होता है। इसमें हाथ-पैर हिलाने तथा शरीर की सारसंभाल करने पर आगार रहता है।
निर्हारिम-अनि रिम—ये दोनों भेद पादपोपगमन एवं भक्तप्रत्याख्यान, इन दोनों के हैं। निर्हार कहते
१. भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२६२ २. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (श्री आगम-प्रकाशन समिति, ब्यावर) खण्ड १, पृ. १८१