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तेरहवाँ शतक : उद्देशक - ७
गौतम ! नैरयिक- द्रव्यात्यन्तिकमरण 'नैरयिक- द्रव्यात्यन्तिकमरण' कहलाता है ।
३९. एवं तिरिक्ख० मणुस्स० देव० ।
[३९] इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक - द्रव्यात्यन्तिकमरण, मनुष्य- द्रव्यात्यन्तिकमरण एवं देवद्रव्यात्यन्तिकरण के विषय में कहना चाहिए ।
४०. एवं खेत्तातियंतियमरणे वि, जाव भावातियंतियमरणे वि ।
[४०] इसी प्रकार ( द्रव्यात्यन्तिकमरण के समान) क्षेत्रात्यन्तिकमरण, यावत् ( कालात्यन्तिकमरण, भवात्यन्तिकमरण, ) भावात्यन्तिकमरण भी जानना चाहिए ।
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विवेचन —— आत्यन्तिकमरण : भेद-प्रभेद - प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ३६ से ४० तक) में आत्यन्तिकमरण के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव की अपेक्षा से पांच भेद बताए गए हैं। फिर उनके भी चार गतियों की अपेक्षा से चार - चार भेद किये गए हैं।
बालमरण के भेद और स्वरूप
४१. बालमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! दुवालसविहे पन्नत्ते तं जहा – वलयमरणे जहा खंदए (स० २ उ० १ सु० २६ ) जाव गिद्धपट्टे ।
[ ४१ प्र.] भगवन् ! बालमरण कितने प्रकार का कहा गया है ?
[४१ उ.] गौतम ! वह बारह प्रकार का कहा गया है। यथा—वलयमरण इत्यादि, द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक के (सू. २६ के) स्कन्दकाधिकार के अनुसार, यावत् गृध्रपृष्ठमरण तक जानना चाहिए।
विवेचन — बालमरण : बारह प्रकार — बालमरण के बारह प्रकार ये हैं-- (१) वलय (वलन्) -मरण, (२) वशार्त्त-मरण, (३) अन्त:शल्य -मरण, (४) तद्भव - मरण, (५) गिरि - पतन, (६) तरुपतन, (७) जल - प्रवेश, (८) ज्वलन- प्रवेश, (९) विष - भक्षण, (१०) शस्त्रावपाटन, (११) वैहानसमरण और (१२) गृद्धपृष्ठमरण । इन बारह भेदों का विस्तृत अर्थ द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक के (सू. २६ में ) स्कन्दकप्रकरण में दिया गया है।
पण्डितमरण के भेद और स्वरूप
४२. पंडियमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोमा ! दुवि पण्णत्ते, तं जहा – पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य [४२ प्र.] भगवन् ! पण्डितमरण कितने प्रकार का कहा गया है ?
१. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (श्री आगम-प्रकाशन समिति, ब्यावर) खण्ड १, पृ. २८०