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तेरहवाँ शतक : उद्देशक- ७
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हैं— बाहर निकालने को । जो साधु गाँव आदि के अन्दर ही किसी मकान या उपाश्रय में शरीर छोड़ता है, उस साधु के शव का उपाश्रय आदि से बाहर निकाल कर अन्तिम संस्कार किया जाता है। अतएव उस साधु का पण्डितमरण निर्हारिम कहलाता है । परन्तु जो साधु अरण्य या गुफा आदि में आहारादि का त्याग करके अन्तिम समय में शरीर छोड़ता है, समभाव पूर्वक मरता है, उसके मृत शरीर को कहीं बाहर निकाला नहीं जाता। इसलिए उक्त साधु के पण्डितमरण को 'अनिर्हारिम' कहते हैं ।
॥ तेरहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥
१. भगवती. (हिन्दीविवेचन ) भा. ५ पृ. २२६२