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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-७ ३४३ नैरयिक भवावीचिकमरण—इसी प्रकार नैरयिक-भव में रहते हुए वे जिन आयुष्यकर्मों का बन्धन आदि करके भोगते हैं और छोड़ते हैं, वह नैरयिक-भवावीचिकमरण कहलाता है।' कठिन शब्दों के अर्थ—णेरइएदव्वे-वट्टमाणा-नारकरूप (नारक जीव रूप) से वर्तमान (रहते हुए) । नेरइयाउयत्ताए—नैरयिक—आयुष्य रूप से।गहियाइं—गृहीत-स्पर्शरूप से ग्रहण किये। बद्धाइंबंधनरूप से बांधे। पुट्ठाई-प्रदेश-प्रक्षिप्त करके पुष्ट किये। पट्टवियाइं—स्थितिरूप से स्थापित किये। निविट्ठाइं—जीवप्रदेशों में प्रविष्ट किये। अभिनिविट्ठाइं—जीवप्रदेशों में अत्यन्त गाढरूप से निविष्ट किये। अभिसमण्णागयाइं–उदयावलिका में आ गए अर्थात् उदयाभिमुख बने हुए। मरंति—छोड़ते हैं, भोग कर मरते हैं । अणुसमयं—प्रतिसमय।निरंतरं—बिना व्यवधान के। अवधिमरण के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप ३१. ओहिमरणे णं भंते ! कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—दव्योहिरणे खेत्तोहिमरणे जाव भावोहिमरणे। [३१ प्र.] भगवन् ! अवधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? • [३१ उ.] गौतम ! अवधिमरण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा—द्रव्यावधिमरण, क्षेत्रावधिमरण (कालावधिमरण, भवावधिमरण और) यावत् भावावधिमरण। ३२. दव्वोहिमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा—नेरइयदव्वोहिमरणे जाव देवदव्वोहिमरणे। [३२ प्र.] भगवन् ! द्रव्यावधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [३२ उ.] गौतम ! द्रव्यावधिमरण चार प्रकार का कहा गया है, यथा—नैरयिक-द्रव्यावधिमरणं, यावत् (तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावधिमरण, मनुष्य-द्रव्यावधिमरण), देवद्रव्याधिमरण। ३३. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ ‘नेरइयदव्वोहिमरणे, नेरइयदव्वोहिमरणे' ? गोयमा ! जंणं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा जाइं दव्वाई संपयं मरंति, ते णं नेरइया ताई देव्वाई अणागते काले पुणो वि मरिस्संति। से तेणेढेणं गोयमा ! जाव दव्वोहिमरणे। [३३ प्र.] भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यावधिमरण नैरयिक-द्रव्यावधिमरण क्यों कहलाता है ? [३३ उ.] गौतम ! नैरयिकद्रव्य (नारक जीव) के रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्योंको इस (वर्तमान) समय में छोड़ते (भोग कर मरते) हैं, फिर वे ही जीव पुनः नैरयिक हो कर उन्हीं द्रव्यों को ग्रहण कर भविष्य में फिर छोड़ेंगे (मरेंगे); इस कारण हे गौतम ! नैरयिक द्रव्यावधिमरण नैरयिक-द्रव्यावधिमरण कहलाता है। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२५ का सारांश ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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