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________________ ३४२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २७. एवं जाव देवदव्वावीचियमरणे । [२७] इसी प्रकार ( तिर्यञ्चयोनिक द्रव्यापीचिकमरण, मनुष्य- द्रव्यावीचिकमरण) यावत् देवद्रव्यावीचिकमरण के विषय में कहना चाहिए । २८. खेत्तावीचियमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा — नेरइयखेत्तावीचियमरणे जाव देवखेत्तावीचियमरणे । [ २८ प्र.] भगवन् ! क्षेत्रावीचिकमरण किंतने प्रकार का कहा है ? [ २८ उ.] गौतम ! क्षेत्रावीचिकमरण चार प्रकार का कहा गया है । यथा— नैरयिक- क्षेत्रावीचिकमरण (तिर्यञ्चयोनिक - क्षेत्रावीचिकमरण, मनुष्य- क्षेत्रावीचिकमरण) यावत् देव- क्षेत्रावीचिकमरण । २९. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नेरइयखेत्ताविचियमरणे, नेरइयखेत्तावीचियमरणे' ? गोमा ! जंणं नेरइया नेरइयखेत्ते वट्टमाणा जाईं दव्वाईं नेरइयाउयत्ताए एवं जहेव दव्वावीचियमरणे तहेव खेत्तावीचियमरणे वि। [ २९ प्र.] भगवन् ! नैरयिक- क्षेत्रावीचिकमरण नैरयिक- क्षेत्रावीचिकमरण क्यों कहा जाता है ? [२९ उ.] गौतम! नैरयिक क्षेत्र में रहे हुए (वर्तमान) जिन द्रव्यों को नारकायुष्यरूप में नैरयिकजीव ने स्पर्शरूप से ग्रहण किया है, यावत् उन द्रव्यों को ( भोग कर) वे प्रतिसमय निरन्तर छोड़ते ( मरते) रहते हैं। (इस कारण से है गौतम ! नैरयिक क्षेत्रावीचिकमरण को नैरयिक- क्षेत्रावीचिकमरण कहा जाता है;) इत्यादि सब कथन द्रव्यावीचिकमरण के समान क्षेत्रावीचिकमरण के विषय में भी करना चाहिए। ३०. एवं जाव भावावीचियमरणे । [३०] इसी प्रकार (कालावीचिकमरण, भवावीचिकमरण), भावावीचिकमरण तक कहना चाहिए । विवेचन — प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. २४ से ३० तक) में आवीचिकमरण के प्रकार तथा उनके प्रत्येक के भेद एवं स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। आवीचिकमरण के भेद-प्रभेद — आवीचिकमरण के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव की अपेक्षा से पांच भेद किये हैं। फिर नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इसी प्रकार चार गतियों की अपेक्षा से प्रत्येक के चारचार भेद किये हैं । नैरयिक- कालावीचिकमरण - नैरयिक नैरयिक काल में रहते हुए जिन आयुष्यकर्मों को स्पर्शादि करके भोगकर छोड़ते हैं, फिर नये कर्मदलिक उदय में आते हैं, उन्हें भोगकर छोड़ते जाते हैं, इस प्रकार का क्रम निरन्तर चलता रहता हो, उसे नैरयिक- कालावीचिकमरण कहते हैं। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२५ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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