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तेरहवां शतक : उद्देशक-७
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[१६ प्र.] भगवान् ! काय रूपी है अथवा अरूपी ? [१६ उ.] गौतम ! काय रूपी भी है और अरूपी भी है। १७. एवं सचित्ते वि काए, अचित्ते वि काए। [१७] इसी प्रकार काय सचित्त भी है और अचित्ते भी है। १८. एवं एक्केक्के पुच्छा। जीवो वि काये, अजीवे वि काए।
[१८ प्र.] इसी प्रकार (भाषा की तरह यहाँ भी) क्रमशः एक-एक प्रश्न करना चाहिए। (उनके उत्तर इस प्रकार हैं-)
[१८ उ.] काय जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है। जीव-अजीव दोनों कायरूप
१९. जीवाण वि काये, अजीवाण वि काए। _[१९] काय जीवों के भी होता है, अजीवों के भी होता है। त्रिविध जीवरूप को लेकर कायनिरूपण-कायभेदनिरूपण
२०. पुव्विं भंते ! काये ? पुच्छा। गोयमा ! पुल्विं पि काए, कायिजमाणे वि काए, कायसमयवीतिकंते वि काये।
[२० प्र.] भगवन् ! (जीव का सम्बन्ध होने से) पूर्व काया होती है, (अथवा कायिकपुद्गलों) के चीयमान (ग्रहण) होतें समय काया होती है या काया-समय (कायिकपुद्गलों के ग्रहण का समय) बीत जाने पर भी काया होती है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ।
[२० उ.] गौतम ! (जीव का सम्बन्ध होने से) पूर्व भी काया होती है, चीयमान (कायिक पुद्गलों के ग्रहण) होते समय भी काया होती है और काया-समय (कायिकपुद्गल-ग्रहण का समय) बीत जाने पर भी काया होती है।
२१. पुव्विं भंते ! काये भिज्जइ ? ० पुच्छा। गोयमा ! पुव्विं पि काए भिज्जइ जाव कायसमयवीतिक्कंते वि काये भिज्जति।
[२१ प्र.] भगवन् ! (क्या जीव के द्वारा कायरूप से ग्रहण करने के समय से) पूर्व भी काया का भेदन होता है ? (अथवा कायारूप से पुद्गलों का ग्रहण करते समय काया का भेदन होता है ? या काया-समय बीत जाने पर काया का भेदन होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।)
[२१ उ.] गौतम ! (जीव के द्वारा कायरूप से ग्रहण करने के समय से) पूर्व भी काया का भेदन होता है, जीव के द्वारा काया के पुद्गलों का ग्रहण (चय) होते समय भी काया का भेदन होता है और काय-समय बीत