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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
एवं वयासी— खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वीयीभयं नगरं सब्धिंतरबाहिरियं जहा कूणिओ उववातिए' जाव पज्जुवासति । पभावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव पज्जुवासंति । धम्मकहा।
[२१] उस समय ( श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पदार्पण की ) बात को सुन कर उदायन राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-'-'देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही वीतिभय नगर को भीतर और बाहर से स्वच्छ करवाओ, इत्यादि औपपातिकसूत्र में जैसे कूणिक का वर्णन है, तदनुसार यहाँ भी ( उदायन राजा भगवान् की ) पर्युपासना करता है; ( तक वर्णन करना चाहिए ।) प्रभावती - प्रमुख रानियाँ भी उसी प्रकार यावत् पर्युपासना करती हैं। (भगवान् ने उस समस्त परिषद् तथा उदायन नृप आदि को) धर्मकथा कही ।
२२. तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतु उट्ठाए अट्ठेति, उ० २ त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी— 'एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! जाव से तहेयं तुब्भे वदह, त्ति कट्टु जं नवरं देवाणुप्पिया ! अभीयीकुमारं रज्जे ठामि । तणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामि । '
अहासु देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।
[२२] उस अवसर पर श्रमण भगवान् महावीर से धर्मोपदेश सुनकर एवं हृदय में अवधारण करके उदायन नरेश अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। वे खड़े हुए और फिर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा की यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोले— भगवन् ! जैसा आपने कहा, वैसा ही है, भगवन् ! यही तथ्य है, यथार्थ है, यावत् जिस प्रकार आपने कहा है, उसी प्रकार है । यों कह कर आगे विशेषरूप से कहने लगे — 'हे देवानुप्रिय ! (मेरी इच्छा है) कि अभीचि कुमार का राज्याभिषेक करके उसे राज (सिंहासन) पर बिठा दूँ और तब मैं आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित हो कर यावत् प्रव्रजित हो जाऊँ । '
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(भगवान् ने कहा—) 'हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो, (वैसा करो,) (धर्मकार्य में) विलम्ब म
करो ।'
विवेचन — प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १९ से २२ तक) में उदायन राजा के पूर्वोक्त संकल्प को जान कर भगवान् ने वीतिभयनगर में पदार्पण किया, नागरिकों तथा राजपरिवारसहित स्वयं उदायन राजा द्वारा भगवान् की वन्दना - पर्युपासनादि तथा धर्मकथा - श्रवण का, तदनन्तर अभीचि कुमार को राज्याभिषिक्त करके स्वयं प्रव्रजित होने की इच्छा का तथा भगवान् द्वारा इच्छा को यथासुख शीघ्र कार्यान्वित करने की प्रेरणा का वर्णन है। स्वपुत्र - कल्याणकांक्षी उदायननृप द्वारा अभीचि कुमार के बदले अपने भानजे का राज्याभिषेक
२३. तए णं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ० समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, वं० न० त्ता तभेव आभिसेक्कं हत्थिं दुरूहति, २ त्ता समणस्स भगवओ
१. देखिये - औपपातिकसूत्र पृ. ६१ से ८२ तक में (आगमोदय समिति) २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) पृ. ६४३