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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
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अद्धासमएहिं पुढे ?
नत्थेक्केण वि। ___ [५१] इसी प्रकार इसी आलापक (पाठ) द्वारा सभी द्रव्य स्वस्थान में एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होते, (किन्तु) परस्थान में आदि के (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन) तीनों के असंख्यात प्रदेशों से स्पर्शना कहनी चाहिए, पीछे के तीन स्थानों (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय, इन तीनों) के अनन्त प्रदेशों से स्पर्शना अद्धासमय तक कहनी चाहिए (यथा—) [प्र.] "अद्धाकाल, कितने अद्धासमयों से स्पृष्ट होता है ?" [उ.] अद्धाकाल के एक भी समय से स्पृष्ट नहीं होता।
विवेचन—प्रस्तुत १८ सूत्रों (सू. ३४ से ५१ तक) में पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश से लेकर संख्यात और असंख्यात अनन्त प्रदेशों की धर्मास्तिकाय से लेकर अद्धासमय तक के प्रदेशों से स्पर्शना की, तदनन्तर एक अद्धाकाल की धर्मास्तिकायादि के प्रदेशों से स्पर्शना की प्ररूपणा की गई है। अन्तिम तीन सूत्रों में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि छह द्रव्यों की धर्मास्तिकायादि छह के प्रदेशों से स्पर्शना की प्ररूपणा की है। __. पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेशों की धर्मास्तिकायादि के प्रदेशों से स्पर्शना—इस विषय में चूर्णिकार का विवेचन यह है कि लोकान्त में द्विप्रदेशिक स्कन्ध एक प्रदेश को अवगाहित करके रहा हुआ है, तथापि 'एक प्रदेश पर प्रतिद्रव्य की अवगाहना होती है' इस नय के मतानुसार अवगाहित प्रदेश एक होते हुए भी भिन्न मानने से वह दो प्रदेशों से स्पृष्ट है तथा उसके ऊपर नीचे जो प्रदेश हैं, वह भी दो पुद्गलों के स्पर्श से पूर्वोक्त नयमतानुसार दो प्रदेशों से ही स्पृष्ट है। पार्श्ववर्ती दो प्रदेश एक-एक अणु को स्पर्श करते हैं। इस प्रकार जघन्य पद में पुद्गलास्तिकाय का द्विप्रदेशी (व्यणुक) स्कन्ध धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों से स्पृष्ट है। यदि पूर्वोक्त प्रकार से नय की विवक्षा न की जाए तो व्यणुक स्कन्ध की जघन्यतः चार प्रदेशों से ही स्पर्शना होती है।
वृत्तिकार के मतानुसार-छह कोष्ठक इसी प्रकार बनाकर |
बीच के जो दो बिन्दु हैं, उन्हें दो परमाणु
समझना। उनमें से इस ओर का परमाणु इस ओर के धर्मास्तिकाय के प्रदेश से तथा दूसरी ओर का परमाणु दूसरी ओर के धर्मास्तिकाय प्रदेश से स्पृष्ट है। इस प्रकार दो प्रदेशों से तथा दो प्रदेशों के मध्य में स्थापित दो परमाणु, आगे के दो प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। इस प्रकार एक के साथ एक और दूसरे के साथ दूसरा, यों कुल चार प्रदेश हुए
और दो प्रदेश अवगाढ़ होने के कारण स्पृष्ट हैं । इस प्रकार कुल छह प्रदेश स्पृष्ट होते हैं। उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से स्पर्शना होती है। यथा—दो परमाणु द्विप्रदेशावगाढ़ होने से दो प्रदेश, ऊपर के दो प्रदेश, नीचे के दो प्रदेश, दोनों ओर के दो-दो प्रदेश और उत्तर-दक्षिण के दो-दो प्रदेश, इस प्रकार बारह प्रदेशों से स्पर्शना होती है।