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________________ ३०० स्थापना इस प्रकार है— इसी प्रकार अधर्मास्तिकायिक प्रदेशों से स्पर्शना होती है। आकाशास्तिकाय के बारह प्रदेशों से स्पर्शना होती है। लोकान्त में भी आकाशप्रदेश विद्यमान होने से इनमें जघन्य पद नहीं होता । पुद्गलास्तिकाय के तीन से दस प्रदेश तक की धर्मास्तिकायादि के प्रदेशों से स्पर्शनापुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के आठ प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। वे तीन प्रदेश एक प्रदेशावगाढ़ होते हुए भी पूर्वोक्त नयमतानुसार अवगाढ तीन प्रदेश के नीचे के तथा तीन प्रदेश ऊपर के और दो प्रदेश दोनों ओर के, इस प्रकार धर्मास्तिकाय के ८ प्रदेशों से स्पर्शना होती है। यहाँ जघन्य पद में सर्वत्र विवक्षित प्रदेशों को दुगुना करके दो और मिलाने पर जितने प्रदेश होते हैं; उतने प्रदेशों से स्पर्शना होती है। उत्कृष्ट पद में विवक्षित प्रदेशों को पांचगुणे करके, दो और मिलाएँ उतने प्रदेशों से स्पर्शना होती है। जैसे—एक प्रदेश को दुगुना करने पर दो होते हैं, उनमें दो और मिलाने पर चार होते हैं। इस प्रकार जघन्यपद में एक प्रदेश की चार प्रदेशों से स्पर्शना होती है । उत्कृष्ट पद में, एक प्रदेश को पांचगुणा करने पर पांच होते हैं, उनमें दो और मिलाने पर सात होते हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट पद में एक प्रदेश सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार तीन से १० प्रदेश तक के विषय में समझ लेना चाहिए । इनकी स्थापना इस प्रकार समझ लेनी चाहिए व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ४ १ २ ३ ४ ६ ७ ८ ९ १० १६ १८ २० २२ ५ ६ ८ १० १२ १४ ७ १२ १७ २२ २७ ३२ ३९ ४२ ४७ ५२ उत्कृष्ट स्पर्श आकाशास्तिकाय का सभी स्थान पर ( एके प्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक) उत्कृष्ट पद ही होता है, जघन्य पद नहीं, क्योंकि आकाश सर्वत्र विद्यमान है। पुद्गलास्तिकाय के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशों की स्पर्शना — दस के उपरान्त संख्या की गणना संख्यात में होती है । यथा— बीस प्रदेशों का एक स्कन्ध लोकान्त के एक प्रदेश पर रहा हुआ है। वह अमुक नय के मतानुसार बीस अवगाढ़ प्रदेशों के ऊपर या नीचे के बीस प्रदेशों से और दोनों ओर के दो प्रदेशों से; १. (क) भगवती (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२०७ - २२०८ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६११ २. (क) वही, पत्र ६११ परमाणु संख्या जघन्य स्पर्श
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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