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चतुर्थ उद्देशक : प्राणातिपात
७०२ जीव और अजीव द्रव्यों में से जीवों के लिए परिभोग्य-अपरिभोग्य द्रव्यों का निरूपण ७०२, कषाय : प्रकार तथा तत्सम्बद्ध कार्यों का कषायपद से अतिदेशपूर्वकनिरूपण ७०३, युग्म : कृतयुग्मादि चार और स्वरूप ७०४, चौवीस दण्डक, सिद्ध और स्त्रियों में
कृतयुग्मादिराशि प्ररूपणा ७०५, अन्धकवह्नि जीवों में अल्पबहुत्व-परिमाणनिरूपण ७०८. पंचम उद्देशक : असुर
७०९ एक निकाय के दो देवों में दर्शनीयता-अदर्शनीयता आदि के कारणों का निरूपण ७०९, चौवीस दण्डकों में स्वदण्डकवर्ती दो जीवों में महाकर्मत्व-अल्पकर्मत्वादि के कारणों का निरूपण ७११, चौवीस दण्डकों में वर्तमानभव और आगामीभव की अपेक्षा आयुष्यवेदन का निरूपण ७१२, चतुर्विध देवनिकायों में देवों की स्वेच्छानुसार विकुर्वणाकरण-अकरण
सामर्थ्य के कारणों का निरूपण ७१३. छठा उद्देशक : गुड़ (आदि के वर्णादि)
७१५ फाणित-गुड़, भ्रमर, शुक-पिच्छ, रक्षा, मंजीठ आदि पदार्थों में व्यवहार-निश्चयनय की दृष्टि से वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-प्ररूपणा ७१५, परमाणु पुद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि
में वर्ण-गन्ध-रस स्पर्शनिरूपण ७१६. सप्तम उद्देशक : केवली
७२० केवली के यथाविष्ट होने तथा दो सावध भाषाएँ बोलने के अन्यतीर्थिक आक्षेप का भगवान् द्वारा निराकरणपूर्वक यथार्थ समाधान ७२०, उपधि एवं परिग्रह : प्रकारत्रय तथा नैरयिकादि में उपधि एवं परिग्रह की यथार्थ प्ररूपणा ७२१, प्रणिधान : तीन प्रकार का नैरयिकादि में प्रणिधान की प्ररूपणा ७२३, दुष्प्रणिधान एवं सुप्रणिधान के तीन-तीन भेद तथा नैरयिकादि में दुष्प्रणिधान-सुप्रणिधान-प्ररूपणा ७२४, अन्यतीर्थिकों द्वारा भगवत्प्ररूपित अस्तिकाय के विषय में पारस्परिक जिज्ञासा ७२५, राजगृह में भगवत्पदार्पण सुनकर मद्रुक श्रावक का उनके दर्शन वन्दनार्थ प्रस्थान ७२६, मद्रुक को भगवदर्शनार्थ जाते देख अन्यतीर्थिकों की उससे पञ्चास्तिकाय सम्बन्धी चर्चा करने की तैयारी, उनके प्रश्न का मद्रुक द्वारा अकाट्य युक्तिपूर्वक उत्तर ७२६, मद्रुक द्वारा अन्यतीर्थिकों को दिये गए युक्तिसंगत उत्तर की भगवान् द्वारा प्रशंसा, मद्रुक द्वारा धर्मश्रवण करके प्रतिगमन ७३०, गौतम द्वारा पूछे गए मद्रुक की प्रवज्या एवं मुक्ति से सम्बद्ध प्रश्न का भगवान् द्वारा समाधान ७३१, महर्द्धिकदेवों द्वारा संग्राम निमित्त सहस्ररूपविकुर्वणा सम्बन्धी प्रश्नों का समाधान ७३२, उन छिन्नशरीरों के अन्तर्गतभाग को शस्त्रादि द्वारा पीडित करने की असमर्थता ७३३, देवासुर-संग्राम में प्रहरण-विकुर्वणा-निरूपण ७३३, महर्द्धिक देवों का लवणसमुद्रादि तक चक्कर लगाकर आने का सामर्थ्य-निरूपण ७३५, सभी देवों द्वारा अनन्त कर्मांशों को क्षय करने के काल का निरूपण ७३५.
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