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सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि एवं मिश्रदृष्टि जीवों के विषय में एक-बहुवचन से सम्यग्दृष्टिभावादि की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्व निरूपण ६६५, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकत्व-बहुत्व से संयत भाव की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्वनिरूपण ६६६, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकवचन-बहुवचन से यथायोग्य सकषायादि भाव की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्वनिरूपण ६६७, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकवचन-बहुवचन से यथायोग्य ज्ञानी-अज्ञानी भावी की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्व निरूपण ६६८, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकत्व-बहुत्व को लेकर यथायोग्य सयोगी-अयोगीभाव की अपेक्षा प्रथमत्व-अप्रथमत्वकथन ६६९, जीव, चौवीस दण्डक सिद्धों में एकवचन-बहुवचन से साकारोपयोग-अनाकारोपयोग भाव की अपेक्षा प्रथमत्वअप्रथमत्व कथन ६७०, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकवचन और बहुवचन से सवेद-अवेद भाव की अपेक्षा से यथायोग्य प्रथमत्व-अप्रथमत्वनिरूपण ६७०, जीव चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकवचन-बहुवचन से यथायोगय सशरीर-अशरीरभाव की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्वनिरूपण ६७१, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में एकवचन-बहुवचन से यथायोग्य पर्याप्तभाव की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्वनिरूपण ६७१, प्रथमत्व-अप्रथमत्व लक्षण निरूपण ६७२, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में पूर्वोक्त चौदह द्वारों के माध्यम से जीवभावादि की अपेक्षा से, एकवचन-बहुवचन से
यथायोग्य चरमत्व-अचरमत्वनिरूपण ६७२ चरम-अचरम-लक्षण निरूपण ६७८. द्वितीय उद्देशक : विशाख
६८० विशाखा नगरी में भगवान् का समवसरण ६८०, शक्रेन्द्र का भगवान् के सानिध्य में आगमन और नाट्य प्रदर्शित करके पुनः प्रतिगमन ६८०, गौतम द्वारा शक्रेन्द के पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न, भगवान् द्वारा कार्तिक श्रेष्ठी के रूप में परिचयात्मक उत्तर ६८१, मंनिसव्रत स्वामी से धर्मकथा-श्रवण और कथा प्रव्रज्याग्रहण की इच्छा ६८२, एक हजार आठ व्यापारियों सहित कार्तिक श्रेष्ठी का दीक्षाग्रहण तथा संयमसाधन ६८५, कार्तिक अनगार
द्वारा अध्ययन, तप, संलेखनापूर्वक समाधिमरण एवं सौधर्मेन्द्र के रूप में उत्पत्ति ६८७. तृतीय उद्देशक : माकन्दिक
६८९ माकन्दीपुत्र द्वारा पूछे गये कापोतलेश्याी पृथ्वी-अप्-वनस्पतिकायिकों को मनुष्यभवान्तर सिद्धगति सम्बन्धी प्रश्न के भगवान् द्वारा उत्तर, माकन्दीपुत्र द्वारा तथ्यप्रकाशन पर संदिग्ध श्रमण निर्ग्रन्थों का भगवान् द्वारा समाधान, उनके द्वारा क्षमापना ६८९, चरम निर्जरापुद्गलों सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ६९२, बन्ध के मुख्य दो भेदों के भेद-प्रभेदों का तथा चौवीस दण्डकों एवं ज्ञानावरणीयादि अष्टविध कर्म की अपेक्षा भावबन्ध के प्रकार का निरूपण ६९६, जीव एवं चौवीस दण्डकों द्वारा किए गए, किए जा रहे तथा किए जाने वाले पापकर्मों के नानात्व का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण ६९८, चौवीस दण्डकों द्वारा आहार रूप में गृहीत पुद्गलों में से भविष्य में ग्रहण एवं त्याग का प्रमाणनिरूपण ७००.
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