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बीओ उद्देसओ : देव द्वितीय उद्देशक : देव ( भेद-प्रभेद, आवाससंख्या, विस्तार आदि) चतुर्विधदेव प्ररूपणा
१. कतिविधा णं भंते ! देवा पन्नत्ता? गोयमा ! चव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा-भवणवासी वाणमंतरा जोतिसिया वेमाणिया। [१ प्र.] भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं।
[१ उ.] गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा—(१) भवनवासी, (२) वाणव्यन्तर, (३) ज्योतिष्क और (४) वैमानिक।
_ विवेचन—देवों के चार निकाय (समूह या वर्ग) हैं। चार जाति के देवों के ये नाम अन्वर्थक हैं। भवनों में (अधोलोकवर्ती भवनों में) निवास करने के कारण ये भवनवासी कहलाते हैं । वनों में तथा वृक्ष, गुफा आदि विभिन्न अन्तरालों आदि में रहने के कारण वाणव्यन्तर कहलाते हैं। ज्योतिर्मान तथा ज्योति (प्रकाश) फैलाने वाले होने के कारण ज्योतिष्क कहलाते हैं तथा विमानों में निवास करने के कारण वैमानिक या विमानवासी कहलाते हैं। भवनपति देवों के प्रकार, असुरकुमारावास एवं उनके विस्तार की प्ररूपणा
२. भवणवासी णं भंते ! देवा कतिविधा पन्नत्ता ?
गोयमा ! दसविधा पण्णता, तं जहा—असुरकुमारा० एवं भेदो जहा बितियसए देवुद्देसए ( स० २ उ० ७) जाव अपराजिया सव्वट्ठसिद्धगा।
[२ प्र.] भगवन् ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे हैं ?
[२ उ.] गौतम ! (भवनवासी देव) दस प्रकार के कहे गये हैं। यथा—असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार। इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वितीय शतक के सप्तम देवोद्देशक के अनुसार यावत् अपराजित एवं सर्वार्थसिद्ध तक जानना चाहिए।
३. केवतिया णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! चोस४ि असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता। [३ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? [३ उ.] गौतम ! असुरकुमार देवों के चौसठ लाख आवास कहे गए हैं।
१. तत्त्वार्थभाष्य, अ. ४, सू. १ : 'देवाश्चतुर्निकायाः।'