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________________ २५० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में (१) एक समय में जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उद्वर्त्तते हैं। (२) कापोतलेश्यी नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्वर्त्तते हैं। (३-४-५) इसी प्रकार यावत् संज्ञी जीव तक नैरयिक—उद्वर्त्तना कहनी चाहिए। (६) असंज्ञी जीव नहीं उद्वर्त्तते । (७) भवसिद्धिक नैरयिक जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्वर्त्तते हैं। इसी प्रकार (८-१३) यावत् श्रुत-अज्ञानी तक उद्वर्तना कहनी चाहिए। (१४) विभंगज्ञानी नहीं उद्वर्त्तते । (१५) चक्षुदर्शनी भी नहीं उद्वर्त्तते। (१६) अचक्षुदर्शनी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्वर्त्तते हैं। (१७-२८) इसी प्रकार यावत् लोभकषायी नैरयिक जीवों तक की उद्वर्त्तना कहनी चाहिए। (२९) श्रोत्रेन्द्रिय उपयोग वाले जीव नही उद्वर्त्तते । (३०३३) इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय के उपयोग वाले भी नहीं उद्वर्त्तते। (३४) नोइन्द्रियोपयोगयुक्त नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उदवर्त्तते हैं। (३५-३६) मनोयोगी और वचनयोगी भी नहीं उद्वर्त्तते । (३७) काययोगी जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्वर्त्तते हैं। इसी प्रकार (३८-३९) साकारोपयोग वाले और अनाकारोपयोग वाले नैरयिक जीवों की उद्वर्तना कहनी चाहिए। विवेचन—उद्वर्त्तना सम्बन्धी ३९ प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत सूत्र में रत्नप्रभानारकावासों के संख्यात योजन वाले नरकों से विविध विशेषण विशिष्ट ३९ प्रकार के नैरयिकों की उद्वर्त्तना की प्ररूपणा की गई है। उद्वर्त्तना : परिभाषा—शरीर से जीव का निकलना—मरना उद्वर्त्तना कहलाती है। संख्यात नारकों की ही उद्वर्त्तना क्यों ?—संख्यात योजन विस्तृत नरकावासों में संख्यात नैरयिक ही समा सकते हैं, इसीलिए तथाकथित नैरयिक उत्कृष्टत: संख्यात ही उद्वर्त्तते हैं। असंज्ञी की उद्वर्त्तना क्यों नहीं ?—उद्वर्त्तना परभव के प्रथम समय में ही होती है। नैरयिक जीव. असंज्ञी जीवों में उत्पन्न नहीं होते, इस कारण वे असंज्ञी नहीं उद्वर्त्तते। .. नरक से इनकी उद्वर्त्तना नहीं होती—चूर्णिकार ने एक गाथा द्वारा नरक से जिनकी उद्वर्त्तना नहीं होती, उन जीवों का उल्लेख किया है- . असण्णिणो य विब्भंगिणो य, उव्वट्टणाइ वजेजा। दोसु वि य चक्खुदंसणी, मण-वइ तह इंदियाई वा ॥१॥ __ अर्थात्-असंज्ञी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, मनोयोगी, वचनयोगी तथा श्रोत्रेन्द्रियादि पांच इन्द्रियों के उपयोग वाले जीव उद्वर्तना नहीं करते। अतः नरक से इनकी उद्वर्तना का निषेध किया गया है। रत्नप्रभापृथ्वी के संख्यातविस्तृत नारकावासों में नैरयिकों की संख्या से लेकर चरम-अचरमों की संख्या से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर ८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु १. (क) (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५९९ भगवती, (हिन्दीविचेचन) भा. ५, पृ. २१४४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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