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________________ बारहवां शतक : उद्देशक-१० २४१ विवेचन–चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के उन्नीस भंग-चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में भी त्रिप्रदेशी स्कन्ध के समान जानना चाहिए। अन्तर यही है कि चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के १९ भंग बनते हैं । सप्तभंगी में से तीन भंग तो सकलादेश की विवक्षा एवं सम्पूर्ण स्कन्ध की अपेक्षा से असंयोगी होते हैं। शेष सप्तभंगी के चार भंगों में प्रत्येक के चारचार विकल्प होते हैं। उनमें बारह भंग तो द्विसंयोगी होते हैं। शेष चार भंग त्रिसंयोगी होते हैं।' १२ आ. नो अवक्तव्य रेखाचित्र इस प्रकार है ११२ १२१ ३१.[१] आया भंते ! पंचपएसिए खंधे, अन्ने पंचपएसिए खंधे ? गोयमा ! पंचपएसिए खंधे सिय आया १, सिय नो आया २, सिय अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ३, सिय आया य नो आया य ४-७, सिय आया य अवत्तव्वं ८-११, नो आया य आयाअवत्तव्वेण य १२-१५, तियगसंजोगे एक्को ण पडइ १६-२२। . [३१ प्र.] भगवन् ! पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, अथवा अन्य (नो आत्मा) है ? - [३१ उ.] गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध (१) कथंचित् आत्मा है, (२) कथंचित् नो आत्मा है, (३) आत्मा-नो-आत्मा-उभयरूप होने से कथंचित् अवक्तव्य है । (४-७) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा (के चार भंग) (८-११) कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य (के चार भंग), (१२-१५) (कथंचित्) नो आत्मा और अवक्तव्य (के चार भंग) (१६-२२) तथा त्रिकसंयोगी आठ भंगों में एक (आठवाँ) भंग घटित नहीं होता, अर्थात् सात भंग होते हैं । कुल मिला कर बावीस भंग होते हैं। [२.] से केणटेणं भंते !० तं चेव पडिउच्चारेयव्वं । गोयमा ! अप्पणो आदिढे आया १, परस्स आदिठे नो आया २, तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वं० ३, देसे आदिढे सब्भावपजवे, देसे आदिढे असब्भावपज्जवे, एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति।तियगसंजोगे एक्कोण पडइ। [३१-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है कि पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, इत्यादि प्रश्न, यहाँ सब पूर्ववत् उच्चारण करना चाहिए। [३१-२ उ.] गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध, (१) अपने आदेश से आत्मा है; (२) पर के आदेश से नोआत्मा है, (३) तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है। (४-१५) एक देश के आदेश से, सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५९५ (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ४, पृ. २१२९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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