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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से तथा एक देश के आदेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो-आत्मा है। इसी प्रकार विकसंयोगी सभी (बारह) भंग बनते हैं। (१६-२२) त्रिकसंयोगी (आठ भंग होते हैं, उनमें से एक आठवां भंग नहीं बनता है)।
३२. छप्पएसियस्स सव्वे पडंति। [३२] षट्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में ये सभी भंग बनते हैं। ३३. जहा छप्पएसिए एवं जाव अणंतपएसिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति।
॥बारसमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥१२-१०॥
॥बारसमं सयं समत्तं॥१२॥ [३३] जैसे षट्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भंग कहे हैं, उसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-पंचप्रदेशी से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के भंग-पंचप्रदेशी स्कन्ध के २२ भंग बनते हैं। इनमें से पहले के तीन भंग पूर्ववत् सकलादेशरूप हैं। इसके पश्चात् द्विसंयोगी बारह भंग होते हैं तथा त्रिकसंयोगी आठ भंग होते हैं। आठवाँ भंग यहाँ असम्भव होने से घटित नहीं होता। षट्प्रदेशी स्कन्ध में और इससे आगे. यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक २३-२३ भंग होते हैं। उनका विवरण पूर्ववत् समझाना चाहिए।'
॥ बारहवाँ शतक : दशवाँ उद्देशक समाप्त ॥ ॥ बारहवाँ शतक सम्पूर्ण॥
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- १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५९५-५९६
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २१३१