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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक-१० २३९ पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो-आत्माएँ और आत्मा तथा नो-आत्मा इस उभयरूप से अवक्तव्य है। १३-एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध कथञ्चित् आत्मा, नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है। इसलिए हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध को कथंचित् आत्मा, यावत्आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य कहा गया है। विवेचन—त्रिप्रदेशी स्कन्ध के आत्मा-नो-आत्मा-सम्बन्धी तेरह भंग—प्रस्तुत विषय में त्रिप्रदेशी स्कन्ध के तेरह भंग होते हैं उनमें से पूर्वोक्त सप्त भंगों में से सकलादेश से सम्पूर्ण स्कन्ध की अपेक्षा से तीन भंग असंयोगी हैं, तत्पश्चात् नौ भंग द्विकसंयोगी हैं तथा एक भंग (तेरहवाँ) त्रिकसंयोगी है।' ३०. [१] आया भंते ! चउप्पएसिए खंधे, अन्ने० पुच्छा। गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे सिय आया १, सिय नो आया २, सिय अवत्तव्वं—आया ति य नो य३.सिय आया य नो आया य४-७. सिय आया य अवत्तव्वं ८-११. सिय नो आया य चं १२-१५. सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं-आया ति य नो आया ति य १६. सिय आया य नो आया य अवत्तव्वाइं आयाओ य नो आयाओ य १७, सिय आया य नो आयाओ य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य १८, सि आयाओ य नो आया य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य १९। [३०-१ प्र.] भगवन् ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा (सद्रूप) है, अथवा उससे अन्य (असद्प) है ? [३०-१ उ.] गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध—(१) कथंचित् आत्मा है, (२) कथंचित् नो आत्मा है। (३) आत्मा-नो-आत्मा उभयरूप होने से—अवक्तव्य है। (४-७) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (८-११) कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (१२-१५) कथञ्चित् नो आत्मा और अवक्तव्य; (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (१६) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है। (१७) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्माएं और नो-आत्माएँ उभय होने से अवक्तव्य है। (१८) कथंचित् आत्मा और नो-आत्माएँ तथा आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप होने से—(कथंचित्) अवक्तव्य है और (१९) कथंचित् आत्माएँ, नो-आत्मा तथा आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप होने से (कथंचित्) अवक्तव्य हैं। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ–चउप्पएसिए खंधे सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्वं० तं चेव अढे पडिउच्चारेयव्वं। गोयमा ! अप्पणो आदिढे आया १, परस्स आदिढे नो आया २, तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वं० १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५९५ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २१२६
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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