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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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है ही नहीं । उपयोगात्मा में कषायात्मा की भजना है, क्योंकि ग्यारहवें से लेकर चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीवों में तथा सिद्ध जीवों में उपयोगात्मा तो है, किन्तु कषाय का अभाव है। होती है,
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यादृष्टि के कषायात्मा किन्तु ज्ञानात्मा (सम्यग्ज्ञानरूपा) नहीं । सकषायी सम्यग्दृष्टि के ज्ञानात्मा होती है। जिस जीव के ज्ञानात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भी भजना है, क्योंकि सम्यग्ज्ञानी कषायसहित भी होते हैं और कषायरहित भी ।
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसे दर्शनात्मा अवश्य होती है, दर्शनरहित घटादि जड़ पदार्थों में कषायों का सर्वथा अभाव है। जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भजना है, क्योंकि दर्शनात्मा वाले सकषायी और अकषायी दोनों होते हैं।
जिसके कषायात्मा होती है, उसे चारित्रात्मा की भजना है और चारित्रात्मा वालों के भी कषायात्मा की भजना है, क्योंकि कषायवाले जीव विरत और अविरत दोनों प्रकार के होते हैं । अथवा सामायिकादि चारित्र वाले साधकों के कषाय रहती है, जबकि यथाख्यातचारित्र वाले कषायरहित होते हैं ।
जिस जीव के कषायात्मा है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है, जो सकरण वीर्य रहित सिद्ध जीव हैं, उनमें कषायों का अभाव पाया जाता है । वीर्यात्मा वाले जीवों के कषायात्मा की भजना है, क्योंकि वीर्यात्मा वाले जीव सकषायी और अकषायी दोनों प्रकार के होते हैं ।
योगात्मा के साथ आगे की पांच आत्माओं का सम्बन्ध : क्यों है, क्यों नहीं ?-- जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके उपयोगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि सभी सयोगी जीवों में उपयोग होता ही है, किन्तु जिसके उपयोगात्मा होती है, उसके योगात्मा होती भी है और नहीं भी होती। चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगकेवली और सिद्ध भगवान् में उपयोगात्मा होते हुए भी योगात्मा नहीं हैं।
जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यादृष्टि जीवों में योगात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती। इसी प्रकार ज्ञानात्मा वाले जीव के भी योगात्मा की भजना है, चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी-केवली और सिद्ध जीवों में ज्ञानात्मा होते हुए भी योगात्मा नहीं होती है।
जिस जीव के योगात्मा होती है, उसे दर्शनात्मा अवश्य होती है, क्योंकि समस्त जीवों में सामान्य अवबोधरूप दर्शन रहता ही है। किन्तु जिस जीव के दर्शनात्मा होती है, उसके योगात्मा की भजना है। दर्शन वाले जीव योगसहित भी होते हैं, योगरहित भी ।
जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है, योगात्मा होते हुए भी अविरत जीवों में चारित्रात्मा नहीं होती। इसी तरह चारित्रात्मा वाले जीवों के भी योगात्मा की भजना है, क्योंकि चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी जीवों के चारित्रात्मा तो है, परन्तु योगात्मा नहीं दूसरी वाचना अनुसार जिसके चारित्रात्मा होती है, उसके योगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि प्रत्युपेक्षणादि व्यापाररूप चारित्र योगपूर्वक ही होता है ।