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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अधिक दस हजार वर्ष का होता है।
भव्यद्रव्यदेव मर कर देव होता है और वहाँ से च्यव कर वनस्पति आदि में अनन्तकाल तक रह सकता है, फिर भव्यद्रव्यदेव होता है। इस दृष्टि से उसका उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल का होता है।
नरदेव का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर—जिन नरदेवों (चक्रवर्तियों) ने कामभोगों की आसक्ति को नहीं छोड़ा, वे यहाँ से मर कर पहले नरक में उत्पन्न होते हैं। वहाँ एक सागरोपम की उत्कृष्ट आयु भोग कर पुनः नरदेव हों और जब तक चक्ररत्न उत्पन्न न हो, तब तक उनका जघन्य अन्तर एक सागरोपम से कुछ अधिक होता है। कोई सम्यग्दृष्टि जीव चक्रवर्ती पद प्राप्त करे, फिर वह देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त काल तक संसार में परिभ्रमण करे, इसके बाद सम्यकत्व प्राप्त कर चक्रवतीपद प्राप्त करे और संयम पालन कर मोक्ष जाए. इस अपेक्षा से नरदेव का उत्कृष्ट अन्तर देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त कहा गया है।
धर्मदेव का जघन्य अन्तर—कोई धर्मदेव (चारित्रवान साधु) सौधर्म देवलोक में पल्योपम-पृथक्त्व आयुष्य वाला देव हो और वह वहाँ से च्यव कर पुन: मनुष्यभव प्राप्त करे। वहाँ वह साधिक आठ वर्ष की आयु में चारित्र ग्रहण करे, इस अपेक्षा से धर्मदेव का जघन्य अन्तर पल्योपमपृथक्त्व कहा गया है।
देवाधिदेव का अन्तर नहीं होता, क्योंकि वे (तीर्थंकर भगवान्) आयुष्यकर्म पूर्ण होने पर सीधे मोक्ष में जाते हैं। पंचविध देवों का अल्पबहुत्व
३२. एएसि णं भंते ! भवियदव्वदेवाणं नरदेवाणं जाव भावदेवाण य कयरे कयरहितो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा नरदेवा, देवाहिदेवा संखेजगुणा, धम्मदेवा संखेजगुणा, भवियदव्वदेवा असंखेजगुणा भावदेवा असंखेजगुणा।
[३२ प्र.] भगवन् ! इन भव्यद्रव्यदेव, नरदेव यावत् भावदेव में से कौन (देव) किन (देवों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं ? ___[३२ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े नरदेव होते हैं, उनसे देवाधिदेव संख्यात-गुणा (अधिक) होते हैं, उनसे धर्मदेव संख्यातगुण (अधिक) होते हैं, उनसे भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे होते हैं और उनसे भी भावदेव असंख्यात गुणे होते हैं। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८७
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २१०२ २. वही, अ. वृत्ति, पत्र ५८७ ३. वही, पत्र ५८७ ४. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २१०२