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बारहवाँ शतक : उद्देशक - ९
विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में पंचविधदेवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है ।
नरदेव सबसे थोड़े क्यों हैं—इसका कारण यह कि प्रत्येक अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी काल में भरत और ऐरवत क्षेत्र, में प्रत्येक में बारह-बारह चक्रवर्ती उत्पन्न होते हैं तथा महाविदेहक्षेत्रीय विजयों में वासुदेवों के होने से, सभी विजयों में वे एक साथ उत्पन्न नहीं होते ।
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नरदेवों में देवाधिदेव संख्यातगुणे हैं—इसका कारण यह है कि भरतादि क्षेत्रों में वे चक्रवर्तियों से दुगुने - दुगुने होते हैं और महाविदेहक्षेत्र में भी वे वासुदेवों के विद्यमान रहते भी उत्पन्न होते हैं।
देवाधिदेवों से धर्मदेव संख्यातगुणे क्यों ? — इसका कारण यह है कि साधु एक समय में कोटीसहस्रपृथक्त्व (दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक) हो सकते हैं।
धर्मदेवों से भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे क्यों ? – देवगतिगामी देशविरत, अविरत सम्यग्दृष्टि आदि (मनुष्य तथा तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) धर्मदेवों से असंख्यातगुणे अधिक होते हैं, इस कारण धर्मदेवों से भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे कहे गये हैं ।
भावदेव उनसे भी असंख्यातगुणे — इसलिए बताए गए हैं कि स्वरूप से ही वे भव्यद्रव्यदेवों से बहुत अधिक हैं ।
भवनवासी आदि भावदेवों का अल्पबहुत्व
३३. एएसि णं भंते ! भावदेवाणं- भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं, वेमाणियाणं सोहम्मगाणं जाव अच्चुतगाणं, गेवेज्जगाणं अणुत्तरोववाइयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
गोमा ! सव्वत्थोवा अणुत्तरोववातिया भावदेवा, उवरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेज्जगुणा, मज्झिमवेज्जा संखेज्जगुणा, हेट्ठिमगेवेज्जा संखेज्जगुणा, अच्चुए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, जाव आणते कप्पे देवा संखेज्जगुणा एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव जोतिसिया भावदेवा असंखेज्जगुणा ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ।
॥ बारसमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो ॥ १२-९॥
[३३ प्र.] भगवन् ! भवनवासी, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक, तथा वैमानिकों में भी सौधर्म, ईशान, यावत् अच्युत, ग्रैवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के भावदेवों में कौन (देव) किस (देव) से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८७