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शरीर, इन्द्रिय एवं योगों को बांधते हुए जीवों के विषय में अधिकरणी-अधिकरणविषयक
प्ररूपणा ५४६. द्वितीय उद्देशक : जरा
५५० जीवों और चौवीस दण्डकों में जरा और शोक का निरूपण ५५०, शक्रेन्द्र द्वारा भगवत्दर्शन, प्रश्नकरण एवं अवग्रहानुज्ञाप्रदान ५५१, शक्रेन्द्र की सत्यता, सम्यग्वादिता, सत्यादिभाषिता, सावद्य-निरवद्यतभाषिता एवं भवसिद्धिकता आदि के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर
५५३, जीव और चौवीस दण्डकों में चेतनकृत कर्म की प्ररूपणा ५५५. तृतीय उद्देशक : कर्म
५५८ अष्ट कर्मप्रकृतियों के वेदावेद आदि का प्रज्ञापना के अतिदेशपूर्वक निरूपण ५५८,
कायोत्सर्ग-स्थित अनगार के अर्श-छेदक को तथा अनगार को लगने वाली क्रिया ५५९. चतुर्थ उद्देशक : यावतीय
५६२ तपस्वी श्रमणों के जितने कर्मों को खपाने में नैरयिक लाखों करोड़ों वर्षों में भी असमर्थ,
५६२. पंचम उद्देश्यक : गंगदत्त (जीवनवृत्त)
५६६ शक्रेन्द्र के आठ प्रश्नों का भगवान् द्वारा समाधान ५६६, सम्यग्दृष्टि गंगदत्त द्वारा मिथ्यादृष्टिदेव को सिद्धान्तसम्मत तथ्य का भगवान् द्वारा समर्थन, धर्मोपदेश एवं भव्यत्वादि कथन
५६९, गंगदत्त देव की स्थिति तथा भविष्य में मोक्षप्राप्ति का निरूपण ५७५. छठा उद्देशक : स्वप्नदर्शन
५७६ स्वप्नदर्शन के पांच प्रकार ५७६, सुप्त-जागृत अवस्था में स्वप्नदर्शन का निरूपण ५७७, जीवों तथा चौवीस दण्डकों के सुप्त, जागृत एवं सुप्त-जागृत का निरूपण ५७७, संवृत आदि में तथारूप स्वप्नदर्शन की तथा इनमें सुप्त आदि की प्ररूपणा ५७८, स्वप्नों और महास्वप्नों की संख्या का निरूपण ५७९, तीर्थंकरादि महापुरुषों की माताओं को गर्भ में तीर्थंकरादि के आने पर दिखाई देने वाले महास्वप्नों की संख्या का निरूपण ५८०, भगवान् महावीर को छद्मावस्था की अन्तिम रात्रि में दीखे १० स्वप्न और उनका फल ५८२, एक-दो भव में युक्त होने वाले व्यक्तियों को दिखाई देने वाले १४ प्रकार के स्वप्नों
का संकेत ५८५, गन्ध के पुद्गल बहते हैं ५८९. . सातवाँ उद्देशक : उपयोग ।
५९० प्रज्ञापनासूत्र-अतिदेशपूर्वक उपयोग के भेद-प्रभेद ५९०. अष्टम उद्देशक : लोक
५९१ लोक के प्रमाण का तथा लोक के विविध चरमान्तों में जीवा-जीवादि का निरूपण ५९१, नरक से लेकर वैमानिक एवं ईषत्-प्राग्भार तक पूर्वादि चरमान्तों में जीवाजीवादि का
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