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________________ भगवान् का उपदेश, क्रुद्ध गोशालक द्वारा भगवान् पर फेंकी हुई तेजोलेश्या से स्वयं का दहन ४८९, क्रुद्ध गोशालक की भगवान् के प्रति मरणघोषणा, भगवान् द्वारा प्रतिवादपूर्वक गोशालक के अन्धकारमय भविष्य का कथन ४९०, श्रावस्ती के नागरिकों के द्वारा गोशालक के मिथ्यावादी और भगवान् के सम्यग्वादी होने का निर्णय ४९१, निर्ग्रन्थ श्रमणों को गोशालक के साथ धर्मचर्चा करने का भगवान् का आदेश ४९२, निर्ग्रन्थों की धर्मचर्चा में गोशालक निरुत्तर पीडा देने में असमर्थ, आजीविक स्थविर भगवान् की निश्राय में ४९३, गोशालक की दुर्दशानिमित्तक विविध चेष्टाएँ ४९५, भगवत्प्ररूपित गोशालक की तेजोलेश्या की शक्ति ४९६, निजपापप्रच्छादनार्थ गोशालक द्वारा अष्टचरम एवं पानक-अपानक की कपोल-कल्पित मान्यता का निरूपण ४९७, अयंपुल का सामान्य परिचय, हल्ला के आकार की जिज्ञासा का उद्भव, गोशालक से प्रश्न पूछने का निर्णय, किन्तु गोशालक की उन्मन्तवत् दशा देख अयंपुल का वापिस लौटने का उपक्रम ५००, अयंपुल की डगमगाती श्रद्धा स्थिर हुई, गोशालक से समाधान पाकर सन्तुष्ट, गोशालक द्वारा वस्तुस्थिति का प्रलाप ५०२, प्रतिष्ठा-लिप्सावश गोशालक का शानदार मरणोत्तर क्रिया करने का शिष्यों को निर्देश ५०५, सम्यक्त्वप्राप्त गोशालक द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तर क्रिया करने का शिष्यों को निर्देश ५०६, आजीविक स्थविरों द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक गुप्त मरणोत्तर क्रिया करके प्रकट में प्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तरक्रिया ५०८, भगवान् का मेंढिक ग्राम में पदार्पण, रोगाक्रान्त होने से लोकप्रवाद ५०९, अफवाह सुन कर सिंह अनगार को शोक, भगवान् द्वारा सन्देश पाकर सिंह अनगार का उनके पास आगमन ५११, रेवती गाथापत्नी का दान ५१४, सुनक्षत्र अनगार की भावि गति-उत्पत्ति सम्बन्धी निरूपण ५१८, गोशालक का भविष्य ५१९, गोशालक : देवभव से लेकर मनुष्यभव तक : विमलवाहन राजा के रूप में ५१९, सुमंगल अनगार की भावी गति : सर्वार्थसिद्ध विमान एवं मोक्ष ५२६, गोशालक के भावी दीर्घकालीन भवभ्रमण का दिग्दर्शन ५२७, गोशालक का अन्तिम भव-महाविदेह क्षेत्र में दृढप्रतिज्ञ केवली के रूप में मोक्षगमन ५३५. सोलहवां शतक प्राथमिक उद्देशकपरिचय ५३७, सोलहवें शतक के उद्देशक के नाम ५४०. प्रथम उद्देशक : अधिकरणी। ५४० अधिकरणी में वायुकाय की उत्पत्ति और विनाश सम्बन्धी निरूपण ५४०, अंगारकारिका में अग्निकाय की स्थिति का निरूपण ५४१, तप्त लोहे को पकड़ने में क्रिया-सम्बन्धी प्ररूपणा ५४१, जीव और चौवीस दण्डकों में अधिकरणी-अधिकरण, साधिकरणीनिरधिकरणी आदि तथा आत्मप्रयोगनिर्वर्तित आदि अधिकरणसम्बन्धी प्ररूपणा ५४३, [२१]
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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