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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र _[२१-१ उ.] गौतम ! (वे मर कर तुरन्त) न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु (एकमात्र) देवों में उत्पन्न होते हैं।
[२] जइ देवेसु उववजंति० ? सव्वदेवेसु उववज्जति जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। [२१-२ प्र.] यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं (तो भवनपति आदि किन देवों में उत्पन्न होते हैं) ?
[२१-२ उ.] (गौतम ! ) वे सर्वदेवों में उत्पन्न होते हैं, अर्थात्-असुरकुमार आदि से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक (उत्पन्न होते हैं।)
२२. [१] नरदेवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता० पुच्छा। गोयमा! नेरइएसु उववजंति, नो तिरि०, नो मणु०, नो देवेसु उववजंति।
[२२-१ प्र.] भगवन् ! नरदेव मर कर तुरन्त (बिना अन्तर के) कहाँ (किस गति में) (जाते हैं, कहाँ) उत्पन्न होते हैं ?
[२२-१ उ.] गौतम ! (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) न तो तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं, न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और न ही देवों में उत्पन्न होते हैं।
[२] जइ नेरइएसु उववजंति, सत्तसु वि पुढवीसु उववजंति।
[२२-२ प्र.] भगवन् ! यदि नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं (तो वे पहले से सातवीं नरकपृथ्वी में से किसमें उत्पन्न होते हैं ?)
[२२-२ उ.] गौतम ! (नैरयिकों में भी) वे सातों (नरक) पृथ्वियों में उत्पन्न होते हैं। २३. [१] धम्मदेवा णं भंते ! अणंतरं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइएसु उववजंति, नो तिरि०, नो मणु० देवेसु उववजंति। [२३-१ प्र.] भगवन् ! धर्मदेव आयुष्य पूर्ण कर तत्काल (बिना अन्तर के) कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
[२३-१ उ.] गौतम ! (धर्मदेव मर कर तत्काल) न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों में उत्पन्न होते हैं।
[२] जइ देवेसु उववजंति किं भवणवासि० पुच्छा।
गोयमा ! नो भवणवासिदेवेसु उववजंति, नो वाणमंतर०, नो जोतिसिय०, वेमाणियदेवेसु उववजंति-सव्वेसु वेमाणिएसु उववजंति जाव सव्वट्ठसिद्धअणु० जाव उववजंति।अत्थेगइया सिझंति जाव अंतं करेंति।