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________________ २१४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र है, अत: उनकी यहाँ विवक्षा नहीं है। देवाधिदेवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति—चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी की आयु ७२ वर्ष की थी, इस अपेक्षा से देवाधिदेव की जघन्य स्थिति ७२ वर्ष की कही है, तथा भगवान् ऋषभदेव की उत्कृष्ट आयु ८४ लाख पूर्व की थी, इस अपेक्षा से देवाधिदेव की उत्कृष्ट स्थिति ८४ लाख पूर्व की कही है। भावदेवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति–व्यन्तरदेवों की आयु १० हजार वर्ष की है, इसलिए देवों की जघन्य स्थिति १० हजार वर्ष की ही है। देवों की उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम की है, यथा—सर्वार्थसिद्ध देवों की स्थिति ३३ सागगरोपम की है। पंचविध देवों की वैक्रियशक्ति का निरूपण १७. भवियदव्वदेवा णं भंते ! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए, पुहत्तं पि पभू विउव्वित्तए ? गोयमा ! एगत्तं पि पभू विउवित्तए, पुहत्तं पि पभू विउव्वत्तए। एगत्तं विउव्वमाणे एगिदियरूवं वा जाव पंचिंदियरूवं वा, पुहत्तं विउव्वमाणे एंगिदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा। ताई संखेज्जाणि वा असंखेजाणि वा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा, सरिसाणि वा असरिसाणि वा विउव्वंति, विउव्वित्ता तओ पच्छा जहिच्छियाई करेंति। [१७ प्र.] भगवन् ! क्या भव्यदेव एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है अथवा अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है? [१७ उ.] गौतम ! वह एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में भी। एक रूप की विकुर्वणा करता हुआ वह एकेन्द्रिय रूप यावत् अथवा एक पंचेन्द्रिय रूप की विकुर्वणा करता है। अनेक रूपों की विकुर्वणा करता हुआ अनेक एकेन्द्रिय रूपों यावत् अथवा अनेक पंचेन्द्रिय रूपों की विकुर्वणा करता है। वे रूप संख्येय या असंख्येय, सम्बद्ध अथवा असम्बद्ध अथवा सदृश या असदृश विकुर्वित किये जाते हैं। विकुर्वणा करने के बाद वे अपना यथेष्ट कार्य करते हैं। .१८. एवं नरदेवा वि, धम्मदेवा वि। [१८] इसी प्रकार नरदेव और धर्मदेव के द्वारा विकुर्वणा के विषय में भी (समझना चाहिए)। १९. देवाहिदेवा णं० पुच्छा। गोयमा ! एगत्तं पि पभू विउव्वित्तए, पुहत्तं पि पभू विउवित्तए, नो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८६ २. वही, पत्र ५८६ ३. वही, पत्र ५८६
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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