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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक-९ २१३ [१४ प्र.] भगवन् ! धर्मदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [१४ उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि की है। १५. देवाहिदेवाणं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं बावत्तरि वासाइं, उक्कोसेणं चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं। [१५ प्र.] भगवन् ! देवाधिदेवों की स्थिति सम्बन्धी पृच्छा है। [१५ उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य बहत्तर वर्ष की और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है। १६. भावदेवाणं० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं। [१६ प्र.] भगवन् ! भावदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [१६ उ.] गौतम ! (भावदेवों की) जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की · विवेचन—प्रस्तुत पंचसूत्रों (१२ से १६ तक) में पूर्वोक्त पांच प्रकार के देवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थित का निरूपण किया गया है। भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त क्यों ?–अन्तर्मुहूर्त आयुष्य वाले पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, देवरूप में उत्पन्न होते हैं, इसलिए भव्यद्रव्यदेव की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की बताई गई है। तीन पल्योपम की स्थितिवाले देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्य और तिर्यञ्च भी देवों में उत्पन्न होते हैं, और वे भव्यद्रव्यदेव होते हैं, उनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है। नरदेव (चक्रवर्ती ) की स्थिति-नरदेव (चक्रवर्ती) की जघन्य स्थिति ७०० वर्ष की होती है, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की आयु इतनी ही थी। उत्कृष्ट स्थिति ८४ लाख पूर्व की होती है, जैसे—भरत-चक्रवर्ती की उत्कृष्ट आयु ८४ लाख वर्ष की थी। धर्मदेव की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति—जो मनुष्य अन्तर्मुहूर्त आयु शेष रहते चारित्र (महाव्रत) स्वीकार करता है, उसकी अपेक्षा से धर्मदेव (चारित्री साधु-साध्वी) की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। कोई पूर्वकोटि वर्ष की आयुवाला मानव अष्ट वर्ष की आयु में प्रव्रज्या योग्य होने से पूर्वकोटि में आठ वर्ष कम की आयु में चारित्र ग्रहण करे तो उसकी अपेक्षा से धर्मदेव की उत्कृष्ट स्थिति देशोन पूर्वकोटि वर्ष की कही गई है। अतिमुक्तक मुनि या वज्रस्वामी, जो क्रमशः ६ वर्ष की एवं ३ वर्ष की आयु में प्रव्रजित हो गए थे, वह कादाचित्क १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८६ २. वही, पत्र ५८६
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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