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________________ २१२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सिद्ध हो जाते हैं इसलिए वे सर्वार्थसिद्ध देवलोक से न तो किसी भी देवलोक में उत्पन्न होते हैं और न ही मनुष्यभव में उत्पन्न होकर पुनः भव्यद्रव्यदेवों में उत्पन्न होते हैं। धर्मदेवों की उत्पत्ति—कोई धर्मदेव तभी बन सकते हैं, जब वे चारित्र (सर्वविरति) ग्रहण करें। छठी नरकपृथ्वी से निकले हुए जीव मनुष्य प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु चारित्र ग्रहण नहीं कर सकते तथा सप्तम नरकपृथ्वी, तेजस्काय, वायुकाय, असंख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज मनुष्य, तिर्यञ्चों से निकले हुए जीव तो मनुष्यभव भी प्राप्त नहीं कर सकते, तब धर्मदेव (चारित्रयुक्त साधक) कैसे हो सकते हैं ? इसलिए इनसे धर्मदेवों की उत्पत्ति का निषेध किया गया है। देवाधिदेव की उत्पत्ति—प्रथम तीन पृथ्वियों से निकले हुए जीव देवाधिदेव (तीर्थंकर) पद प्राप्त कर सकते हैं, आगे की चार पृथ्वियों से नहीं। . __ भवनपति-सम्बन्धी उपपात का अतिदेश क्यों?—बहुत से स्थानों से आकर जीव भवनवासी देव के रूप में उत्पन्न होते हैं, क्योंकि उसमें असंज्ञी जीव भी आकर उत्पन्न होते हैं। इसलिए यहाँ भवनपति-सम्बन्धी उपपात का अतिदेश किया है। कठिन शब्दार्थ-वक्कंतीए-व्युत्क्रान्तिपद में। खोडेयव्वा-निषेध करना चाहिए। पंचविध देवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण १२. भवियदव्वदेवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। [१२. प्र.] भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [१२ उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की है। १३. नरदेवाणं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं सत्त वाससयाई, उक्कोसेणं चउरासीतिं पुव्वसयसहस्साइं। [१३ प्र.] भगवन् ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [१३ उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य सात सौ वर्ष की और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है। १४. धम्मदेवाणं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अन्तोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८५-५८६ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र, ५८६ ३. वही, पत्र ५८६ ४. वही, पत्र ५८६ ५. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २०९०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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