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बारहवाँ शतक : उद्देशक - ९
[१०-१ प्र.] भगवन् ! देवाधिदेव कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं ?
[१० - १ उ.] गौतम ! वै नैरयिकों से (आकर ) उत्पन्न होते हैं, किन्तु तिर्यञ्चों से या मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते। देवों से भी (आकर) उत्पन्न होते हैं ।
[ २ ] जति नेरतिएहिंतो ० ?
एवं तिसु पुढवीसु उववज्जंति, सेसाओ खोडेयव्वाओ ।
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[१०-२ प्र.] (भगवन् ! ) यदि नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों यावत् अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१०-२ उ.] गौतम ! (वे आदि की) तीन नरकपृथ्वियों में से आ कर उत्पन्न होते हैं। शेष चार (नरकपृथ्वियों) से (उत्पत्ति का ) निषेध करना चाहिए ।
[ ३ ] जदि देवेहिंतो ० ?
वेमाणि
सव्वेसु उववज्जंति जाव सव्वट्टसिद्ध त्ति । सेसा खोडेयव्वा।
[१०-३ प्र.] भगवन् ! यदि वे देवों से ( आ कर ) उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनपति आदि से (आ कर) उत्पन्न होते हैं ?
[१० - ३ उ.] गौतम ! वे समस्त वैमानिक देवों से यावत् सर्वार्थसिद्ध (के देवों) से ( आ कर ) उत्पन्न होते हैं। शेष (देवों से उत्पत्ति) का निषेध (करना चाहिए ।)
११. भावदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति० ?
एवं जहा वक्कंती भवणवासीणं उववातो तहा भाणियव्वं ।
[११ प्र.] भगवन् ! भावदेव किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[११ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में जिस प्रकार भवनवासियों के उपपात का कथन किया है, उसी प्रकार यहाँ भी करना चाहिए ।
विवेचन — प्रस्तुत पाँच सूत्रों (७ से ११ तक) में पूर्वोक्त पंचविध देवों की उत्पत्ति के स्थानों का वर्णन किया गया है।
भव्यद्रव्यदेवों की उत्पत्ति — असंख्यातवर्ष की आयु वाले, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज जीवों एवं सर्वार्थसिद्ध के देवों से आकर भव्यद्रव्यदेवों की उत्पत्ति के निषेध का कारण यह है कि असंख्यातवर्ष की आयु वाले, अकर्मभूमिज एवं अन्तरद्वीपज तो सीधे भावदेवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु भव्यद्रव्यदेवों (मनुष्य, तिर्यञ्चों) में उत्पन्न नहीं होते हैं और सर्वार्थसिद्ध के देव तो भव्यद्रव्यसिद्ध होते हैं, अर्थात् वे तो मनुष्यभव प्राप्त करके
१. देखिये —— पण्णवणासुत्तं भा. १ ( महावीर जै. वि.), सू. ६४८-४९, पृ. १७४