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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और न तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं।'
[२] जदि नेरतिएहिंतो उववज्जति किं रयणप्पभापुढविनेरतिएहिंतो उववजंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरतिएहिंतो उववजंति ?
गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरतिएहितो उववज्जति, नो सक्कर, जाव अहेसत्तमपुढविनेरतिएहितो उववज्जति।
[८-२ प्र.] भगवन् ! यदि वे (नरदेव) नैरयिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[८-२ उ.] गौतम ! वे रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु शर्कराप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकों से यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से (आकर) उत्पन्न नहीं होते।
[३] जइ देवेहिंतो उववजंति किं भवणवासिदेवेहिंतो उववजंति, वाणमंतर-जोतिसियवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति ?
गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति, वाणमंतर०, एवं सव्वदेवेसु उववाएयव्वा वक्कतीभेदेणं जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। ' [८-३ प्र.] भगवन् ! यदि वे देवों से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं ? अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? .. [८-३ उ.] गौतम ! भवनवासी देवों से भी वाणव्यन्तर देवों से भी। इस प्रकार सभी देवों से उत्पत्ति (उपपात) के विषय में यावत् सर्वार्थसिद्ध तक, (प्रज्ञापनासूत्र के छठे) व्युत्क्रान्ति-पद में कथित भेद (विशेषता) के अनुसार कहना चाहिए।
९. धम्मदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववजंति किं नेरतिएहिंतो०?
एवं वक्कंतोभेदेणं सव्वेसु उववाएयव्वा जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। नवरं तमा-अहेसत्तमातेउ-वाउअसंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमग-अंतरदीवगवज्जेसु।
[९ प्र.] भगवन् ! धर्मदेव कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[९ उ.] गौतम ! यह सभी उपपात व्युत्क्रान्ति-पद में उक्त भेद सहित यावत्-सर्वार्थसिद्ध तक कहना चाहिए परन्तु इतना विशेष है कि तम:प्रभा, अधःसप्तम पृथ्वी तथा तेजस्काय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष की आयुवाले अकर्मभूमिक तथा अन्तरद्वीपक जीवों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं।
१०. [ १ ] देवाहिदेवा णं भंते ! कतोहितो उववजंति ? किं नेरइएहितो उववजंति० ? पुच्छा ? गोयमा ! नेरइएहिंतो उववज्जति, नो तिरि०, नो मणु०, देवेहितो वि उववजंति।