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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (वध) करने वाले के रूप में, पडिणीयत्ताए—प्रत्यनीक अर्थात्-प्रत्येक कार्य में विघ्न डालने वालें, कार्यविघातक के रूप में। पच्चामिताए—अमित्र-शत्रु के सहायक के रूप में। दासत्ताए-घर की दासी के पुत्र के रूप में। पेसत्ताए—प्रेष्य-आज्ञापालक नौकर के रूप में। भयगत्ताए-भृतक—दुष्काल आदि में पोषित के रूप में। भाइल्लगत्ताए—भागीदार-हिस्सेदार के रूप में। भोगपुरिसत्ताए-दूसरों के द्वारा उपार्जित अर्थ का उपभोग करने वाले के रूप में। भजत्ताए—भार्या—पत्नी के रूप में।धूयत्ताए—दुहिता-पुत्री के रूप में।सुण्हत्ताएस्नुषा-पुत्रवधू के रूप में।
॥ बारहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥
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१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८१
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २०८१