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________________ १९८ . व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ..१३. [२] अयं णं भंते ! जीवे असंखेजेसु बेंदियावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि बेंदियावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सतिकाइयत्ताए बेंदियत्ताए उववन्नपुव्वे ? . हंता, गोयमा ! जाव खुत्तो। . [१३-१ प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव असंख्यात लाख द्वीन्द्रिय-आवासों में से प्रत्येक द्वीन्द्रियावास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में और द्वीन्द्रियरूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? [१३-१ उ.] हाँ, गौतम ! (वह पूर्वोक्तरूप में) यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार (उत्पन्न हो चुका है)। [२] सव्वजीवा वि णं० एवं चेव । [१३-२] इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में (कहना चाहिए)। १४. एवं जाव मणुस्सेसु। नवरं तेंदिएसु जाव वणस्सतिकाइयत्ताए तेंदियत्ताए, चउरिदिएसु चउरिंदियत्ताए, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए, मणुस्सेसु मणुस्सत्ताए० सेसं जहा बेंदियाणं। [२४] इसी प्रकार (त्रीन्द्रिय से लेकर) यावत् मनुष्यों तक (अपने-अपने आवासों में उत्पन्न होने के विषय में कहना चाहिए) । विशेषता यह है कि त्रीन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में, यावत् त्रीन्द्रियरूप में, चतुरिन्द्रियों में यावत् चतुरिन्द्रियरूप में, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चरूप में तथा मनुष्य रूप में उत्पत्ति जाननी चाहिए। शेष समस्त कथन द्वीन्द्रियों के समान जानना चाहिए। १५. वाणमंतर-जोतिसिय-सोहम्मीसाणेसु य जहा असुरकुमाराणं। [२४] जिस प्रकार असुरकुमारों (की उत्पत्ति) के विषय में कहा है; उसी प्रकार वाणव्यन्तर; ज्योतिष्क तथा सौधर्म एवं ईशान देवलोक तक कहना चाहिए। १६. [१] अयं णं भंते ! जीवे सणंकुमारे कप्पे बारससु विमाणावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि वेमाणियावासंसि पुढविकाइयत्ताए० ? सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव अणंतखुत्तो। नो चेव णं देवित्ताए। _ [१६-१ प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव सनत्कुमार देवलोक के बारह लाख विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ? [१६-१ उ.] (हाँ, गौतम ! इस सम्बन्ध में) सब कथन असुरकुमारों के समान, यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं; यहाँ तक कहना चाहिए। किन्तु वहाँ वे देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुए। [२] एवं सव्वजीवा वि।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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