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बारहवाँ शतक : उद्देशक-६
१९१ भोगा। गहगण-नक्खत्त जाव कामभोगेहिंतो चंदिम-सूरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसराईणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा चेव कामभोगा। चंदिम-सूरिया णं गोतमा ! जोतिसिंदा जोतिसरायाणो एरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव विहरति।
॥बारसमे सए : छट्ठो उद्देसओ समत्तो ॥१२-६॥ [८ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र और सूर्य किस प्रकार के कामभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं ?
[८ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम यौवन वय में किसी बलिष्ठ पुरुष ने, किसी यौवन-अवस्था में प्रविष्ट होती हुई किसी बलिष्ठ भार्या (कन्या) के साथ नया (थोड़े दिन पहले) ही विवाह किया, और (इसके पश्चात् वह पुरुष) अर्थोपार्जन करने की खोज में सोलह वर्ष तक विदेश में रहा। वहाँ से धन प्राप्त करके अपना कार्य सम्पन्न कर वह निर्विघ्नरूप से पुनः लौट कर शीघ्र अपने घर आया। वहाँ उसने स्नान किया, बलिकर्म (भेंटन्यौछावर) किया, (विघ्ननिवारणार्थ) कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित किया। तत्पश्चात् सभी आभूषणों से विभूषित होकर मनोज्ञ स्थालीपाक—विशुद्ध अठारह प्रकार के व्यंजनों से युक्त भोजन करे। फिर महाबल के प्रकरण में (श. ११, उ. ११, सू. २३ में) वर्णित वासगृह के समान शयनगृह में शृंगारगृहरूप सुन्दर वेषवाली, यावत् ललितकलायुक्त, अनुरक्त, अत्यन्त रागयुक्त और मनोऽनुकूल पत्नी (देवांगना) के साथ वह इष्ट शब्द रूप, यावत् स्पर्श (आदि), पांच प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोग का उपभोग करता हुआ विचरता है।
[प्र.) हे गौतम ! वह पुरुष वेदोपशमन (कामविकार-शान्ति) के समय किस प्रकार के साता—सौख्य का अनुभव करता है ?
[उ.] (गौतम स्वामी द्वारा) आयुष्मन् श्रमण भगवन् ! वह पुरुष उदार (सुख का अनुभव करता है।)
[भगवान् ने कहा-] हे गौतम ! उस पुरुष के इन कामभोगों से वाणव्यन्तरदेवों के कामभोग अनन्तगुणविशिष्टतर होते हैं। वाणव्यन्तरदेवों के कामभोगें से असुरेन्द्र के सिवाय शेष भवनवासी देवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं। असुरेन्द्र को छोड़कर (शेष)भवनवासी देवों के कामभोगों से (इन्द्रभूत) असुरकुमारदेवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं। असुरकुमार देवों के कामभोगों से ग्रहगण-नक्षत्र-तारा-रूप ज्योतिष्कदेवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं । ग्रहगण-नक्षत्र-तारा-रूप ज्योतिष्कदेवों के कामभोगों से ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्रमा और सूर्य के कामभोग अनन्तगुण विशिष्टतर होते हैं।
हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्रमा और सूर्य इस प्रकार के कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है—यों कह कर भगवान् गौतमस्वामी श्रमण भगवान् महावीर को (वन्दन-नमस्कार करके) यावत् विचरण करते हैं।