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________________ १९० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्को के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र की कितने अग्रमहिषियाँ हैं ? [६ उ.] गौतमः ! जिस प्रकार दसवें शतक (के उद्देशक ५ सू. २७) में कहा है, तदनुसार अपनी राजधानी में सिंहासन पर मैथुन-निमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है, यहाँ तक कहना चाहिए। ७. सूरस्स वि तहेव (स० १० उ० ५ सु० २८)। [७] सूर्य के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार (शतक १०, उ. ५ सूत्र २८ के अनुसार) कहना चाहिए। विवेचन—ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र एवं सूर्य की पट्टानियाँ चन्द्र की पट्टरानियाँ चार हैं—(१) चन्द्रप्रभा, (२) ज्योत्स्नाभा, (३) आर्चिमाली और (४) प्रभंकरा। इसी प्रकार ज्योतिष्केन्द्र सूर्य की भी चार पट्टरानियाँ हैं—(१) सूर्यप्रभा, (२) आतपाभा, (३) अर्चिमाली और (४) प्रभंकरा। जीवाभिगमसूत्र प्र. ३ ज्योतिष्क उद्देशक के अनुसार सारा वर्णन जानना चाहिए।' चन्द्र-सूर्य के कामभोग सुखानुभव का निरूपण ८. चंदिम-सूरिया णं भंते ! जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति ? ____ गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुढाण-बलत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकजे अत्थगवेसणाए सोलसवासविप्पवासिए, से णं तओ लद्धटे कयकजे अणहसमग्गे पुणरवि नियगं गिहं हव्वमागते ण्हाते कायबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुण्णं थालिपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि । वासघरंसि; वण्णओ० महब्बले ( स० ११ उ० ११ सु० २३) जाव सयणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियए सिंगारागारचारुवेसाए जाव कलिआए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकूलाए सद्धिं इढे सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरेजा। से णं गोयमा ! पुरिसे विओसमणकाल समयंसि केरिसयं सातासोक्ख पच्चणुभवमाणे विहरति ? ओरालं समणाउसो! तस्स णं गोयमा ! पुरिस्स कामभोएहितो वाणमंतराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिद्रुतरा चेव कामभोगा। वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहिंतो असुरिंदवजियाणं भवणवासीणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव कामभोगा।असुरिंदवजियाणं भवणवासियाणं देवाणं कामभोगेहिंतो असुरकुमाराणं [इंदभूयाणं ] देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिद्रुतरा चेव कामभोगा। असुरकुमाराणं० देवाणं कामभोगेहिंतो गहगणनक्खत्त-तारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा चेव काम १. (क) भगवती. शतक १०, उ. ५, सू. २७-२८ (ख) जीवाभिगम-प्रतिपत्ति ३, उ. २, पत्र ३८३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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