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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
विवेचन — देवों के कामभोगों का सुख – यहाँ चन्द्रमा और सूर्य के कामभोगों को दूसरे देवों से अनन्तगुण-विशिष्टतर बताने के लिए तारतम्य बताया गया है।
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उपमा और कामसुखों का तारतम्य – ज्योतिष्केन्द्र चन्द्रमा और सूर्य के कामभोगों को उस नवविवाहित से उपमित किया गया जो सोलह वर्ष तक प्रवासी रह कर धनसम्पन्न होकर घर लौट आया हो, सर्वथा वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हो, षड्स- व्यंजन युक्त भोजन करके शयनगृह में मनोज्ञ कान्त कामिनी के साथ मानवीय शब्दादि कामभोगों का सेवन करता हो ।
देवों के कामभोग-सुखों का तारतम्य बताते हुए कहा गया है— (१) पूर्वोक्त नवविवाहित के कामसुखों से वाणव्यन्तर देवों के कामसुख अनन्तगुण-विशिष्ट हैं। (२) उनसें असुरेन्द्र को छोड़ कर भवनपतिदेवों के कामसुख अनन्तगुण-विशिष्टतर हैं, (३) असुरेन्द्र के सिवाय शेष भवनपतिदेवों के कामसुखों से असुरकुमार देवों के कामसुख अनन्तगुण - विशिष्टतर हैं, (४) उनके कामसुखों से ग्रह-नक्षत्रतारारूप ज्योतिष्कदेवों के कामसुख अनन्तगुण-विशिष्टतर हैं और (५) उन सबसे ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र सूर्य के कामभोग अनन्तगुणविशिष्टतम होते हैं ।
कामसुख उदारसुख क्यों ? – यहाँ कामभोगों के सुख को उदारसुखं कहा गया है, वह मोक्षसुख या आत्मिकसुख की अपेक्षा से नहीं, किन्तु सामान्य सांसारिक जनों के वैषयिक सुखों की अपेक्षा से कहा गया है। वास्तव में कामभोग सम्बन्धी सुख, सुख नहीं, सुखाभास है, क्षणिक है, तुच्छ है, एक तरह से दुःख का कारण है ।
कठिन शब्दों के अर्थ — पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थाए – प्रथम यौवन के उत्थान - उद्गम में जो बलिष्ठ (प्राणवान्) है। अणुरत्ताए – अनुरागवती, अविरत्ताए— अप्रिय करने पर भी जो पति से विरक्त न हो । विउसमण-कालसमयंसि — पुरुषवेद (काम) विकार के उपशमन के समय में अर्थात् — रतावसान में । पच्चणुब्भवमाणा — अनुभव करते हुए । ओरालं— उदार, विशाल ।
॥ बारहवाँ शतक : छठा उद्देशक समाप्त ॥
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त), पृ. ५९५-५९६
२. भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २०७०
३. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५७९
(ख) भगवती. ( हिन्दीविवेचन ) आ. ४, पृ. २०६८