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[३ प्र.] भगवन् ! राहु कितने प्रकार का कहा गया है ?
[३ उ.] गौतम ! राहु दो प्रकार का कहा गया है, यथा— ध्रुवराहु और पर्वराहु | उनमें से जो ध्रुवराहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्रबिम्ब के पन्द्रहवें भाग को बार-बार ढँकता रहता है, यथा— प्रथमा (प्रतिपदा की रात्रि) को चन्द्रमा के प्रथम भाग को ढँकता है, द्वितीया को (चन्द्र (b) दूसरे भाग को ढँकता है, इसी प्रकार यावत् अमावस्या को ( चन्द्रमा के) पन्द्रहवें भाग को ढँकता है। कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आवृत) हो जाता है, और शेष (अन्य ) समय में चन्द्रमा रक्त (अंशत: आच्छादित) और विरक्त (अंशत: अनाच्छादित) रहता है। इसी कारण शुक्लपक्ष का ( प्रथम दिन ) प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा (पन्द्रहवें दिन ) तक प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, (अर्थात्— प्रतिपदा से प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग खुला होता जाता है, यावत् पूर्णिमा तक पन्द्रहवाँ भाग खुला हो जाता है ।) शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णतः अनाच्छादित हो जाता है, और शेष समय में वह ( चन्द्रमा) रक्त (अंशतः आच्छादित) और विरक्त (अंशत: अनाच्छादित) रहता है।
इनमें से जो पर्वराहु है, वह जघन्यतः छह मास में चन्द्र और सूर्य को आवृत करता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढँकता है।
विवेचन — नित्यराहु और पर्वराहु : स्वरूप और कार्यकलाप – राहु दो प्रकार का है— ध्रुवराहु और राहु | काला राहु - विमान जो चन्द्रमा से चार अंगुल ठीक नीचे सन्निहित होकर नित्य संचरण करता है, वह ध्रुवराहु है । चन्द्रमा की १६ कलाएं (अंश) हैं, जिन्हें १६ भाग कहते हैं । कृष्णपक्ष में राहु प्रतिपदा (पहली तिथि) से लेकर पन्द्रह भागों में से चन्द्रबिम्ब के एक-एक भाग को प्रतिदिन आच्छादित करता जाता है । पन्द्रहवें अर्थात् अमावस्या के दिन वह चन्द्रमा के पन्द्रह भागों को आवृत कर देता है । पन्द्रह भाग से युक्त कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा राहु से सर्वथा आच्छादित (उपरक्त) हो जाता है और शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक एक-एक भाग को अनाच्छादित (खुला) करता रहता है । अर्थात् शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से पूर्णिमा तक एक भाग आच्छादित और एक भाग अनाच्छादित रहता है । अन्तिम ( पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा सर्वथा अनाच्छादित होने से शुक्ल हो जाता है। पूर्णमासी या अमावस्या के (पर्व) में सूर्य या चन्द्रमा को जब राहु आवृत करता है, उसे पर्वराहु कहते हैं। पर्वराहु जघन्य ६ मास में चन्द्रमा और सूर्य को आवृत करता है और उत्कृष्ट ४२ मास में चन्द्रमा को और ४८ वर्ष में सूर्य को आवृत करता है । यही चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण कहलाता है । चन्द्र को शशी-सश्री और सूर्य को आदित्य कहने का कारण
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४. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'चंदे ससी, चंदे ससी' ?
१.
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
(क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र. ५७७
(अ) किन्हं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं ।
चरंगुलमप्पत्तं ट्ठा चंदस्स तं चरई ॥
(आ) यस्तु पर्वणि पौर्णमास्यामावस्ययोश्चन्द्रादित्ययोगयोरुपरागं करोति स पर्वराहुरिति ।
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ४, पृ. २०६६