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________________ १८६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कहने चाहिये। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व (ईशानकोण) और दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) के दो आलापक कहने चाहिए, और इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व (आग्नेयकोण) एवं उत्तर-पश्चिम (वायव्यकोण) के दो आलापक कहने चाहिए। इसी प्रकार जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीडा (परिचारणा) करता हुआ राहु, बार-बार चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को आवृत करता रहता है, तब मनुष्य लोक में मनुष्य कहते हैं'राहु ने चन्द्रमा को ऐसे ग्रस लिया, राहु इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रस रहा है।' जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीडा करता हुआ राहु चन्द्रद्युति को आच्छादित करके पास से होकर निकलता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं—'चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला, इस प्रकार चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला।' जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की प्रभा (लेश्या) को आवृत करके वापस लौटता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं—'राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया, राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया।' [जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विकुर्वणा करता हुआ या परिचारणा करता हुआ राहु, चन्द्रमा के प्रकाश को ढंक कर मध्य-मध्य में से होकर निकलता है, तब मनुष्य कहने लगते हैं-राहु ने चन्द्रमा का अतिभक्षण (या अतिक्रमण) कर लिया, राहु ने चन्द्रमा का अतिभक्षण (अतिक्रमण) कर लिया।] जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विकुर्वणा करता हुआ या कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति (लेश्या) को नीचे से, (चारों) दिशाओं एवं (चारों) विदिशाओं से ढंक कर रहता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं—'राहु ने इसी प्रकार चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है, राहु ने यों चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।' __विवेचन—राहु : स्वरूप, नाम और वर्ण—प्रस्तुत दो सूत्रों में राहु के स्वरूप का, उसके नौ नामों और उसके विमान के पांच वर्णों का प्रतिपादन किया गया है। राहु द्वारा चन्द्रग्रसन की लोकभ्रान्तियों का निराकरण-(१) जब राहु पूर्वादि दिशाओं अथवा उत्तर-पूर्वादि विदिशाओं में से किसी एक दिशा अथवा विदिशा से होकर आता-जाता है, या विक्रिया अथवा परिचारणा करता है, तब राहु पूर्वादि में या ईशानादि दिग्विदिग् विभाग में चन्द्र के प्रकाश को आच्छादित कर देता है, उसी को लोग चन्द्रग्रहण (राहु द्वारा चन्द्र का ग्रसन) कहते हैं । (२) जब राहु चन्द्रमा की ज्योत्स्ना के पास से होकर निकलता है तो लोग कहने लगते हैं—'चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर दिया है,' अर्थात् चन्द्रमा राहु की कुक्षि में प्रविष्ट हो गया है। (३) जब राहु चन्द्रमा की ज्योति को आवृत करके लौटता है या दूर हो जाता है, तब मनुष्य कहते हैं—'राहु ने चन्द्रमा को उगल दिया।' (४) जब राहु चन्द्रमा को आच्छादित करके बीच-बीच में से होकर निकलता है, तब लोग कहने लगते हैं—'राहु ने चन्द्रमा को डस लिया'। (५) इसी प्रकार जब राहु चन्द्रमा की कान्ति के नीचे से या दिशा-विदिशाओं को आवृत करके रहता है, तब लोग कहते हैं—'राहु ने चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।' भगवान् महावीर का कथन यह है कि राहु ने चन्द्रमा को
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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