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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेयगाइं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता । कम्मगं जीवं च पडुच्च जहा नेरइयाणं ।
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[२४ प्र.] भगवन् ! मनुष्य कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं ?
[२४ उ.] गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस पुद्गलों की अपेक्षा (मनुष्य) पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले कहे हैं । कार्मणपुद्गल और जीव की अपेक्षा से नैरयिकों के समान ( कथन करना चाहिए )
२५. वाणमंतर - जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया ।
[२५] वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में भी नैरयिकों के समान कथन करना चाहिए ।
विवेचन— नारक आदि अष्टस्पर्श, चतुःस्पर्श और वर्णादि से रहित क्यों ? – नारक आदि तथा मनुष्य, पंचेन्द्रियतिर्यंच, जो भी औदारिक, वैक्रिय, तैजस या आहारकशरीर वाले हैं, वे पांच वर्ण, दो गन्ध तथा पांच रस वाले हैं, तथा अष्टस्पर्शी हैं, क्योंकि ये चारों शरीर बादर - परिणाम वाले पुद्गल हैं अतः बादर होने से ये अष्टस्पर्शी होते हैं तथा कार्मण सूक्ष्म परिणाम- पुद्गल रूप होने से चतुःस्पर्शी हैं। जीव (आत्मा) में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नहीं है । अतएव वह वर्णादिशून्य है ।
धर्मास्तिकाय से लेकर अद्धाकाल तक में वर्णादिप्ररूपणा
२६. धम्मत्थिकाए जाव' पोग्गलत्थिकाए, एए सव्वे अवण्णा, नवरं पोग्गलत्थकाए पंचव पंचरसे, दुगंधे अट्ठफासे पन्नत्ते ।
[२६] धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय आदि सब (अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय और काल ) वर्णादि से रहित हैं । विशेष यह है कि पुद्गलास्तिकाय में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श कहे हैं।
२७. नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, एयाणि चउफासाणि ।
[२७] ज्ञानावरणीय (से लेकर) अन्तराय कर्म तक आठों कर्म, पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और चार स्पर्श वाले कहे हैं।
२८. कण्हलेसा णं भंते ! कइवण्णा० पुच्छा ?
दव्वलेसं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता । भावलेसं पडुच्च अवण्णा अरसा अगंधा
अफासा ।
[ २८ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे हैं ?
[ २८ उ. ] गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से उसमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श कहे हैं और भावलेश्या की अपेक्षा से वह वर्णादि रहित है ।
२९. एवं जाव सुक्कलेस्सा।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५७४
२. जाव पद से अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए इत्यादि पाठ समझना चाहिए।